poems

Saturday 27 September, 2014

पंचायत का निर्णय

मित्रों नारनौल में चुनाव का अखाड़ा सज गया है। पहलवान अपने-अपने लंगोट कस रहे हैं। ‘...का बटन दबाईये और ....को विजयी बनाईये’ का शोर एक ही डबिंग आर्टिस्ट की आवाज में दिन भर सुनाई पड़ रहा है। एक नामचीन उम्मीदवार जिन्होंने पिछले पांच साल सिर्फ पैसा बटोरने में ही निकाल दिए अनमने ढंग से फिर सामने हैं तो दूसरे ईश्वर की कृपा और ईश्वरीय स्वरुप व्यक्ति से अमरत्व का वरदान ले कर मौजूद हैं। तो एक पारिवारिक पार्टी ने परिवारवाद में आस्था जताते हुए घर-गृहस्ती में लगी महिला का चौका चूल्हा छुड़ा कर चुनावी आग में झोंक दिया है। एक उम्मीदवार जिन की सारी उम्र सार्वजनिक जगहों पर कब्ज़ा करने में गुजर गयी वो भ्रष्टाचार से मुक्ति की बात कर रहे हैं। एक श्रीमान योग्यता की कसौटी पर सब को कसने पर जोर दे रहे हैं तो एक धनी ‘समाज सेवी’ ने समाजसेवी का चोला उतार कर नेताजी का खोल ओढ़ लिया है और पैसा पानी की तरह बहा रहे हैं। वहीँ एक बंधु अपनी महिला कर्मचारी के शोषण के आरोप में जेलयात्रा का इंतजार करते पार्टी प्रमुख के धन से हलवा-पूरी और अन्य ‘आवश्यक सामग्री’ उपलब्ध करवाते हुए हरियाणा की ‘तकदीर’ बदलने का सपना दिखने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में बेवडों को मग्गड़ मारे, नशे में टुल्ल ‘साले ये चुनाव तो हर छह महीने में होने चाहिए’ कहते हुए हर मोड़ पर सुना जा सकता है। हमेशा की तरह मूल मुद्दे फिर हवा हो गए हैं और हर उम्मीदवार को अपनी जाति के वोटरों को रिझाते देखा जा सकता है। सोशल मीडिया पर भी चापलूसों की फ़ौज अपने आकाओं के महिमामंडन में लगी है। इस बीच एक मित्र ने एक लघु कथा भेजी है।
         एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और रेगिस्तान के इलाके में आ गये! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ गये हैं? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा ! भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे ! रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर जोर से चिल्लाने लगा। हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है। हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही। पेड़ पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद!  यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो। हंस चौंका, उसने कहा, आपकी पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है! उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है।दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की  जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया ! उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई -ऐ मित्र हंस, रुको ! हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है ! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है !यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !
साथियों बिना विजन, बिना आस्था, बिना त्याग, बिना चरित्र, बिना शिक्षा, बिना ज्ञान, सिर्फ जाति, धन, पार्टी के बल पर अनेकों उल्लू आपके सामने हैं अब आप सोचिये कि आप किस उल्लू के हक़ में फैसला देने वाले हैं!


Wednesday 10 September, 2014

जूतों में दाल


लीजिए साहब आखिर नारनौल विधान सभा की भाजपा की टिकट घोषित हो ही गई। दिमाग में दो कहानियाँ आ रही हैं। पहली तो बिल्लियों की लड़ाई में बन्दर के फायदा उठाने वाली और दूसरी उस माँ वाली जो राजा के इस न्याय पर कि बच्चे के दो टुकड़े कर के दोनों औरतों को दे दो, रोती है और टुकड़े करने से मना करती है व इस की बजाय राजा से बच्चा दूसरी औरत को देने की प्रार्थना करती है। समझ नहीं आ रहा यहाँ कौन सी कहानी लागू होगी पर इतना तय है कि बीजेपी के टिकटार्थियों में उस माँ जैसा संवेदनशील हृदय किसी का नहीं जो बच्चे की जान बचाने के लिए उसे दूसरी औरत को देना मंजूर कर लेती है।

सुबह ही सुबह एक मित्र ने सूचना दी कि बीजेपी की टिकट की घोषणा हो गई। 'किसे मिली?' स्वाभाविक सा सवाल था। उन्होंने नाम बताया। 'ये कौन है?' अगला स्वाभाविक सवाल। पता लगा यादव सभा के प्रधान, तो एक धुंधली सी आकृति उभरी। फिर बारी-बारी से बीजेपी नारनौल के क्षत्रपों के चेहरे आँखों के सामने घूम गए। पर आश्चर्य अगली जो तस्वीरें सामने आई वो इंसानों की नहीं चप्पलों की थी, घिसी, टूटी, पुरानी चप्पलें। काफी दिमाग लगाया तो समझ आया कि ये कार्यकर्ताओं की चप्पलें हैं। बेचारा कार्यकर्त्ता फिर ठगा गया। जिंदगी गुजर गयी दरियाँ उठाते-बिछाते पर रहा वहीं। झंडा उठाएगा, 'की जय' 'की जय' बोलेगा और फिर चुनाव के समय कोई पैराशूट से प्रकट होगा और मज़बूरी में उस के पीछे हो लेगा। ऐसे हो गया जैसे पार्टियाँ मालिक हैं और कार्यकर्त्ता नौकर। कुछ दिन पहले इनेलो की टिकटों में भी यही हुआ जब कार्यकर्ताओं को धता बता कर नाकारा नेताओं की पुत्र वधुएँ और पूंजीपति पसंद किए गए। पर इनेलो तो प्राइवेट लिमिटेड पार्टी है। ऊपर से चाबुक चली और सारे शेर हो लिए सीधे! लगे मंजीरे 'जय चौटाला' 'जय कमलेश'! पर बीजेपी का क्या होगा। यहाँ तो वही एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते जो साल भर सक्रिय रहते हैं! रामबिलास शर्मा की चाबुक से तो कुत्ता भी स्टूल पर नहीं बैठता, शेर तो कहाँ बैठेंगे लगता है यहाँ अमित शाह को चाबुक चलाने खुद आना पड़ेगा। सजातीय उम्मीदवार के सात खून माफ़ करने की मानसिकता रखने वाले इलाके में दो सशक्त सैनी उम्मीदवारों के बीच अहीर उम्मीदवार को टिकट देना अच्छा फैसला हो सकता है पर बीजेपी हाई कमान को इतना तो ध्यान रखना ही चाहिए था कि चुनाव यादव सभा के नहीं विधान सभा के हो रहे हैं। बहरहाल मैं उम्मीद करता हूँ कि बीजेपी के झंडे उठाते बूढ़े हो चले कार्यकर्ताओं को चप्पलों की नयी जोड़ी तो नसीब होगी क्यों कि उन्हें भी पता है की ये दाल तो जूतों में ही बंटेगी।

Saturday 6 September, 2014

मिट्टी के शेर

शिक्षक दिवस पर प्रधानमंत्री द्वारा बच्चों से संवाद पर बहुत से तथाकथित बुद्धिजीवियों ने काफी हो हल्ला मचाया। एक भारतीय होने के नाते मैं मानता हूँ कि फ़िलहाल हमें राष्ट्रीय चरित्र की जरूरत है और प्रधान मंत्री द्वारा बच्चों से संवाद स्थापित करने जैसे कार्य इस में बहुत मदद करेंगे। मेरे विचार से ये एक उत्तम कदम था और दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर इस का स्वागत किया जाना चाहिए था। ये अफ़सोस की बात है कि कुछ राज्यों की सरकारों ने सिर्फ इर्ष्यावश अपने राज्यों के स्कूलों में येनकेन प्रकारेण इस संवाद को बच्चों तक नहीं पहुँचने दिया। जाहिर है कि राजनैतिक प्रतिद्वंदिता इस का कारण है और जब बात राजनैतिक छिछोरेपन की आती है तो देश जाए भाड़ में! चलिए राष्ट्र और राज्यों से नीचे हमारे अपने नारनौल में आते हैं। पर पहले एक छोटी सी कहानी! एक मेंढकी ने टापों की आवाज सुन कर पानी से बाहर सर निकाला और सरपट दौड़ते घोड़े को कौतुहल से निहारा। उस ने जोश में आ कर तालाब से बाहर चार-छह छलांगें लगायी और फिर गर्व से गर्दन ऊँची कर पीछे मुड़  कर फासले को निगाहों से नापा-तोला! ‘बहुत अच्छे! अब होगा घोड़े से मुकाबला!’ उसी समय घोडा फिर वहां से गुजरा। ‘अरे ये टप-टप कैसे होती है?’ तभी मेंढकी की नजर घोड़े की नालों पर पड़ी। ‘ओह ये है राज इस रफ़्तार का!’ और मेंढकी अपने पैरों में नाल ठुकवाने चल दी लुहार की तरफ!

आदर्श सनातन धर्म विद्यालय नारनौल का पुराना और प्रतिष्ठित विद्यालय है! मुझ जैसे न जाने कितने हजार लोगों पर इस विद्यालय का कर्ज है! न जाने कितने ही लोग यहीं पढ़ कर देश विदेश में नाम कमा रहे हैं! पर ट्रष्ट की अंदरूनी राजनीति के चलते यहाँ न कुछ आदर्श बचा है, न सनातन, न धर्म और न ही विद्यालय! इस राजनीति ने स्कूल की प्रतिष्ठा को बहुत नुकसान पहुँचाया है। बहरहाल इस खींचतान के बीच श्री गोपाल शरण गर्ग और श्री गोविन्द भारद्वाज क्रमशः प्रधान और उप प्रधान के पद पर सुशोभित हैं। इन में से एक तो प्रसिद्द मौसम वैज्ञानिक हैं! इन्हें मौसम विज्ञान में इतनी महारत हासिल है कि ये हवा को सूंघ कर पता लगा लेते हैं की किस पार्टी की सरकार आने वाली है! बस जी ये उस पार्टी की सभाओं में मंच पर मुख्यातिथि के बगल की सीट का जुगाड़ किये मिलते हैं! कट्टर स्वयंसेवक का दम भरने वाले इन महाशय ने उल्लेखनीय छलांग तब लगायी जब ये इनेलो की सरकार आने पर वहां नजर आए और इन्होने संघ से ऐसी बेरुखी से किनारा किया कि बेचारों को शाखा लगाने की जगह तक देने से इंकार कर दिया। फिर चौटाला से लोगों ने किनारा कर लिया और हुड्डा को सत्ता सौंप दी पर ये मौसम वैज्ञानिक वहां पहले से ही नजर आए और मित्रों इन के पाला बदल से लग रहा है कि इस बार बीजेपी के आसार हैं पर घबराईये मत बीजेपी नहीं भी आती है तो भी ये सत्ता में आई पार्टी में ही मिलेंगे! वैसे लोग इन के बारे में तरह-तरह की बातें करते हैं परन्तु सच होने पर भी उन का उल्लेख उचित नहीं है! दूसरे सज्जन बीजेपी के पुराने नेता हैं! इन सब बातों का उल्लेख यहाँ इस लिए जरूरी हो गया कि ये कहा जा सके कि आदर्श सनातन धर्म विद्यालय एक प्रकार से भाजपामय है और जैसा कि मैंने ऊपर लिखा कि प्रधानमंत्री का कार्यक्रम देश के लिए था! दलगत राजनीति से ऊपर! फिर क्या कारण रहा कि एक प्रतिष्ठित विद्यालय, जिस के ट्रष्ट के प्रधान और उपप्रधान दोनों ही भाजपा से जुड़े हैं, ने अपने विद्यार्थियों को प्रधानमंत्री का संबोधन दिखाना जरूरी नहीं समझा? अगर ये भूल है तो बहुत बड़ी भूल है और ये ट्रष्ट के पदों के लिए जूतम पैजार करने वाले महानुभावों की विद्यालय में रूचि प्रदर्शित करता है। हाँ एक पहलू और भी हो सकता है कि ये दोनों सज्जन भी नरेंद्र मोदी के लम्बे हो चले कद से असहज महसूस कर रहे हों, कुछ राज्यों के मुख्यमन्त्रियों की तरह! यदि ऐसा है तो ए मेरे नारनौल की एतिहासिक भूमि, तुझे शतशत प्रणाम कि तूने ऐसी मेंढकी पैदा की जिन में पैरों में नाल ठुकवाने की कुव्वत है! तू ही ऐसे सूरमा पैदा कर सकती है।