इतिहास गवाह है कि सेवा वालों को कभी मेवा नहीं मिली। पूरी जवानी देश को देने के बाद बिना किसी स्थाई रोजगार के 35-40 की उम्र में सेना से बाहर धकेले जाने वाले जवानों की आवाज़ हर बार हाशिए से बाहर कर दी जाती है। OROP, 70% पेंशन, CPC में कमी की लड़ाईयाँ उसी जवान के कंधे पर रख कर लड़ी जाती हैं ऐसे ही जैसे दुश्मन से जंग लड़ी जाती है। हैरत की बात है कि दुश्मन की पहली गोली झेलने वाले जवान का जान जोखिम वेतन (military service pay) अफसर और नर्सों से काफी कम है! हर बार अफसर की तीन मांगों के साथ जवान की एक मांग घुसा कर प्रेशर ग्रुप सरकार पर दवाब बनाते हैं और सरकार को थोड़ा ढीला छोड़ते हुए दो मांगों पर से दवाब हटा देते हैं। कहने की जरुरत नहीं कि दो में से एक मांग जवान की होती है। जवानों का सरकार से सौदेबाज़ी का न कोई प्लेटफॉर्म है, न अधिकार हैं और न ही प्रेशर ग्रुप हैं। ये बिल्कुल किसी लड़की की शादी नाई-बामण द्वारा तय किए जाने जैसा मामला है। सरकार में बैठे बाबुओं को न अफसर से मतलब न जवान से! पहले से ही मलाई डकार चुके बाबू देखते हैं कि कम से कम बजट में काम कैसे हो। उन्हें एक लाख अफसरों को 10 रुपए देना 15 लाख जवानों को 2 रुपए देने से सस्ता लगता है। और खबर बनती है सेना की मांगें मान ली गईं! और सच भी होती है क्योंकि माँग उठाने वाला भी अफ़सर है और मानने वाला भी अफ़सर। तीनों सेनाओं के सेनापतियों ने 'विसंगतियां' दूर किए बिना 7th CPC के अनुसार वेतन लेने से इंकार किया हुआ है, ज़रा तह में जाइए और देखिए कि वो मांगें हैं किसकी। इस हरक़त पर सरकार को तीनों सेनाध्यक्षों को बर्खास्त कर देना चाहिए था पर उरी और सर्जिकल स्ट्राइक के 'राष्ट्रवाद' में डूबे देश से घबरा कर 'मजबूत' प्रधानमंत्री की सरकार ये हिम्मत नहीं जुटा पाई! याद दिला दूँ कि पांचवें वेतन आयोग के दौरान कुछ सैनिकों ने वेतन लेने से मना किया था उन्हें जबर्दस्ती/समझा कर/डरा कर वेतन दिया गया और जिन्होंने फिर भी विरोध किया उन्हें गर्म हीटरों तक पर बैठा कर प्रताड़ित किया गया था। हक़ीक़त ये है कि सेना की 'देशभक्ति की गाथा' के नक्कारे में 'निरीह' जवानों की आवाज़ दब जाती है। सोशल साइट्स पर एक msg चला कि कोई भी सैनिक यदि बिना सीट के यात्रा कर रहा है तो उसे स्थान दें! बड़ी अच्छी भावना है। जनता है भी भावुक और तब तो और ज्यादा जब युद्ध की गंध आने लगे! पर क्यों नहीं यह सुनिश्चित किया जाता कि सैनिक को आरक्षण मिले ही मिले। क्यों दो-दो दिन जवान को शौचालयों के सामने बैठ कर सफ़र तय करना पड़ता है? क्या किसी ने किसी अफसर को बच्चे गोदी में लिए सामान सर पर रखे यात्रा करते देखा है? एक-डेढ़ दशक पुरानी बात है। एक ट्रांजिट कैंप में मैंने जवानों के शौचालयों में ताला लगा पाया पूछताछ में पता लगा कि चाभी इंचार्ज हवलदार के पास है। मैं उसके पास गया चाभी मांगी, उसने दे भी दी। मैंने पूछा कि ताला क्यों लगाया तो उसका जवाब था कि इस्तेमाल करना तो आता नहीं सा** गंदा कर देते हैं, आप ले जाइए, वापस मुझे दे दीजिए। मैंने कहा क्या ये लोग बंदूक चलाना घर से सीख कर आए थे? आप इन्हें बंदूक चलाना सिखा सकते हैं पर हगना नहीं? ट्रांजिट कैम्पों तक में हर तरह की साज-सज्जा और ऐशो आराम से सुसज्जित अफ़सरों की मेस और जवानों के शौचालयों के दरवाज़े टूटे हुए! वाटर कूलर लगा है पर उस में पानी नहीं! पानी है तो कूलर ख़राब है! एक प्लास्टिक की बालटी, उसे ले कर जवान निबटने जा रहा है, कई बार खुले में भी, उस से ही मंजन कर रहा है, उसी से नहा रहा है और उस में ही पानी भर के दिन भर के कार्यों में इस्तेमाल कर रहा है! सुघड़ गृहणी जैसा भारत का जवान! 'जय हिंद, जय भारत, भारत माता की जय' लीजिए साहब हो गया जवान का कल्याण! क्या कोई बता सकता है कि आपको जम्मू से रामबन में सुबह 6 बजे सन्देश मिला कि लंच में 100 बसों में 2000 जवान आ रहे हैं। आपने 3 चपाती और दो कड़छी चावल की दी उस से ज्यादा मांगने वाले को आपने झाड़ पिलाई फिर भी 200 आदमी को खाना नहीं मिला! क्यों? कहते हैं कि रामबन ट्रांजिट कैम्प का कमांडिंग अफसर बनने के लिए अधिकारियों को लाखों रुपए रिश्वत के और पूरे कार्यकाल 'हरामखोरी' का हिस्सा देना पड़ता है।
क्या ये ताज़्जुब की बात नहीं है कि नर्स की MSP सूबेदार मेज़र से भी ज़्यादा है? कौन अधिक जोख़िम में काम करता है? नर्स या सूबेदार मेजर? तीन-तीन महीने बढ़ा कर सार्जेंट के प्रमोशन में पांच साल से ज्यादा की बढ़ोतरी कर दी जबकि कैप्टन, मेजर और लेफ्टिनेंट कर्नल व उनके समकक्षों के प्रमोशन में उतने ही समय की कमी कर दी। 2nd लेफ्टिनेंट का तो रैंक ही खत्म कर दिया पर सिपाही का रैंक बरकार है और बड़ी संख्या में तो जवान सिपाही भर्ती होते हैं तथा सिपाही ही वापस आ जाते हैं। क्या कोई अफसर लेफ्टिनेंट रिटायर हुआ? पिछले पे कमीशन में मेजर से ले. कर्नल/समक्ष बनने पर 32000 से 35000 की बढ़ोतरी दी गई जबकि उतनी ही नौकरी किए हवालदार/समकक्ष बनने पर मात्र 1800 रुपए बढ़ाए गए! 'जितना छोटा पद, पदोन्नति का तरीका उतना ही सरल!' सुन्दर और सरल नियम है। किंतु जवानों का प्रमोशन ACR आधारित और अफ़सरों का समय आधारित! जब कि पहले इसका विपरीत था। किसने बदला? लेफ्टिनेंट कर्नल को तो पे बैंड 4 में ले कर चले गए पर हवलदार को पे बैंड 2 में नहीं डाला, जबकि मांगें दोनों रखी गई थीं। पर वही 2 रुपये और 10 रुपये वाला मामला! 70% से अधिक सिपाहियों को उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा इस्तेमाल करके, बिना किसी संरक्षण के लात मार दो और अफसर को आधी सदी से अधिक गुजर जाने तक सज़ा कर रखो। ये कैसे निर्धारित हुआ कि जवान की कार उम्र भर हसीन रहेगी और अफ़सर की 4 साल में बुढ़ा जायेगी? CSD से जवान को जिंदगी भर में सिर्फ एक कार और अफ़सर को 4 साल बाद दूसरी! ये सब निर्धारित करने वाला है कौन? अफसर हर जगह लाभान्वित और जवान वंचित, शोषित, अपमानित! वो भी उस अफसर द्वारा जिस पर उसकी समस्या-सुविधा की जिम्मेदारी है!! नतीजा- बड़ी संख्या में जवानों का पलायन! आखिर क्यों एक बैच के सिर्फ 8% जवान ही सेवा में टिकें? सब सुविधाओं के बावजूद! यह सवाल मैंने पूर्व सेनाध्यक्ष एयरचीफ मार्शल ब्राउने से पूछा। उस समय वे पश्चिम वायु कमान के AOC-in-C थे। मेरा मानना है कि मैनेजमेंट के प्रयोगों की प्रयोगशाला बन चुकी सेना में अच्छे समाधान की उम्मीद बेमानी है अगर अच्छी सफाई (explanation) मिल जाए तो खैर मानिए! पर मुझे वो भी न मिली! उन्होंने आश्वासन दिया कि देखते हैं क्या किया जा सकता है! उसके बाद वे वायुसेनाध्यक्ष बने पर कुछ न किया जा सका क्योंकि कुछ किया जाना ही नहीं है। बेचारा जवान भी यह भूल चुका है कि उसे एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है। सब से बड़ी ज़रूरत जवान की समस्या समझने और उपयुक्त स्तर पर उसकी पैरवी करने के लिए एक मजबूत प्लेटफॉर्म की जरुरत है। आज उन्हें समझने और उठाने का काम अफसर कर रहा है जो कि हक़ीक़त में उस की दिक्कतों को स्वयं की जायज़ और नाजायज़ मांगें मनवाने के मुलम्मे के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।
तीनों सेनाओं के प्रमुख ने मुख्यतया अफसरों की मांगें (कुछ जायज भी) ले कर पे कमीशन अटकाया हुआ है, बाबू कम खर्च और अपनी सर्वोच्चता बरकार करने में उलझे हैं। देश अपने सैनिक की बहादुरी की अफीम के नशे में झूम-झूम कर सोशल साइट्स पर वायरल है। और इस सब से बेख़बर जवान देश सेवा में डटा है।
कितना लिखूँ मैं?? आप सेवा करने वाले को मेवा बाँटने की पैरवी कीजिए मैं बस इतना ही कहूंगा
'समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र।
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी इतिहास।।'
जयहिंद!!