“किस का समर्थन कर रहे हो?” चुनावों के मौसम का आम
सवाल। ये सवाल तब बार-बार पूछा जाने लगता है
जब आंदोलनों, धरनों और प्रदर्शनों का आप का कोई साथी चुनाव लड़ रह हो। “उमाकांत
छक्कड़” स्वाभाविक जवाब देने के बाद मैं सामने वाले के चेहरे के बदलते भावों से उस
की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश करता हूँ।
इस बात को आगे बढ़ाएं इस से पहले चलिए एक नजर नारनौल
विधानसभा के उम्मीदवारों पर डाल ली जाये। एक बड़ी पार्टी के उम्मीद्वार, पार्टी की
टिकट उन की झोली में ऐसे गिरी जैसे अंधे की झोली में सेब! वो कब क्या बयान देदें
भगवन को भी पता नहीं। उन के सर पर एक ऐसे वंशवादी नेता का हाथ जिन्हें 9 साल तक सत्ता
की खीर खाने के बाद पता चला कि उन के क्षेत्र के साथ अन्याय हो रहा है। निर्णय में इतना समय लगते देख कर मुझे
रीजनिंग परीक्षा में मात्र 40 मिनट का समय रखने वालों की बुद्धि पर तरस आ रहा है।
बहरहाल नेता जी किसी मदारी की तरह पूछते हैं “बोलो रख दूँ इस के सर पर हाथ?” हर
बार लुटती-पिटती, ठगी जाती जनता मदारी की बातों से सम्मोहित हो कर दोनों हाथ उठा
कर चिल्लाती है “हाँ-हाँ”। जमूरे की आँखों में आंसू हैं और आंसू उस कार्यकर्त्ता
की आँखों में भी हैं जो राष्ट्रवाद का पाठ कंठस्त करने के बाद उसे व्यक्तिवाद के
सामने नतमस्तक देख रहा है।
दूसरी बड़ी पार्टी का उम्मीदवार। जिन को गालियाँ दे-दे
कर चुनाव जीता पहला मौका मिलते ही उन की ही गोदी में जा बैठा। सरकार के तारणहार इस
उम्मीदवार को इनाम में मंत्री पद मिला और दोनों हाथों से पैसा बटोरने की छूट! मुझे
नहीं पता था कि कपूरों, खानों और रोशनों के बलिष्ठ शरीर और पदुकोनों, चोपड़ाओं की
सुडौल काया देखने की आदी जनता को एक मंत्री को सीडी में देखना पड़ेगा! कल ही की बात
है एक बहुत ही संस्कारी, चरित्रवान सज्जन इस उम्मीदवार की सिफारिश ले कर मेरे पास
आए, मैंने अफ़सोस किया कि उन जैसे व्यक्ति को ऐसे उम्मीदवार के लिए घूमना पड़ रहा
है। उनके चहरे पर ग्लानि थी पर वो ‘क्या करें’ कह कर चलते बने।
तीसरी बड़ी पार्टी का उम्मीदवार। (मैं सोचता हूँ कि
पार्टी की टिकट का नाम ‘टिकट’ बिल्कुल सही रखा है। लेने के लिए लाइन में लगना पड़ता
है और पैसे से मिलती है।) नेता जी अपने अंतिम पड़ाव पर हैं पर जिस पार्टी का झंडा
उठा रखा है उस में तो पोस्टर में दादा से ले कर पडपोते तक की तस्वीरें लगती हैं
फिर बिना जनता को ‘वारिस’ दिए कैसे चले जायेंगे। लो जी बेटा न सही बेटे की बहु ही
सही। लो मिल गयी टिकट, बल्ले-बल्ले! अनुभव और योग्यता गयी तेल लेने।
अब इन की सुनिए ये हैं चौथे। तमाम उम्र सार्वजानिक
जगहों पर कब्ज़ा करके उन्हें बेचने में गुजार दी, धर्मशालाओं और मंदिर मस्जिद तक को
नहीं छोड़ा और चले हैं भ्रष्टाचार मिटाने। हाँ भाई आधा शहर कब्ज़ा लिया अब तो
भ्रष्टाचार मिट ही जाना चाहिए।
लीजिये पांचवे सिर्फ इस लिए मैदान में हैं क्योंकि
मदारी ने इन्हें अपना जमूरा न बना कर उम्मीदवार नंबर एक को बना लिया। अब लोकतंत्र
में जमूरों को भी विद्रोह का हक़ तो है ही।
ये हैं मिस्टर छठे इन्होने कुछ और किया हो या न किया
हो पर उम्मीदवार नंबर तीसरे को छठी का दूध याद दिला दिया। जाति सूंघ कर वोट देने
वाली जनता में से समाज का काफी बड़ा हिस्सा तोड़ कर तीसरे की नींद हरम कर दी। इनकी
योग्यता है इनका पैसा जो कि समाज सेवक बन कर इन्होने खूब लुटाया है।
बाकी लोग भी इन छह उम्मीदवारों के अगल-बगल की योग्यता
के हैं। यही कहानी हर जगह है। चाहे देश में कहीं भी चले जाओ। खैर मैं मेरे समर्थन
का उम्मीदवार पूछने वाले सज्जन की आँखों में झांकता हूँ उनकी मुस्कराहट में व्यंग
की मात्रा सौम्यता से अधिक दिखाई देती है। ‘छक्कड़ आदमी तो अच्छा है पर जीतेगा थोड़े
ही’। मैं सवाल दागता हूँ कि जीतने वाले को वोट देना चाहिए या अच्छे उम्मीदवार को? जवाब
आता है ‘जीतने वाले को’। ‘आप मेरे हितैषी है?’ मेरा अगला सवाल। ‘जी’। ‘अगर 10 लोग
आ कर मुझे पीटने लगें तो आप मुझे बचाने की कोशिश करेंगे या उन के साथ मिल कर पीटने
लगेंगे?’ सज्जन कुछ विचलित होते हैं। मैं उनकी हालत पर तरस खाता हूँ और विदा लेता
हूँ। परन्तु मूल प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं। क्या चुनाव के समय हम वहीँ पर आ
जाएँ जिन बातों की खिलाफत करते रहे? क्या मौजूदा उम्मीदवारों में उमाकांत छक्कड़ सब
से उपयुक्त उम्मीदवार नहीं है? क्या वो बेईमान है? क्या वो दलाल है? क्या उसे शाम
होते ही लालपरी चाहिए? क्या उसे नौकरी दिलवाने के बदले हुस्नपरी चाहिए? क्या वो
भूमाफिया है? क्या वो बिकाऊ है? इन सवालों को मैंने खुद के सामने रखा और फिर
निर्णय किया कि हाँ छक्कड़ ही वो उम्मीदवार है जिसका समर्थन किया जाना चाहिए। आखिर
जिन मुद्दों के लिए इस शहर में हम कुछ लोग आवाज उठा रहे हैं छक्कड़ का समर्थन उन
मुद्दों की अगली कड़ी है। इसी कारण मैं उमाकांत छक्कड़ के समर्थन में नुक्कड़ सभाओं
में अपने विचार रख रहा हूँ। परिणाम चाहे जो भी रहे पर मुझे गर्व होगा कि मैंने एक
अच्छे उम्मीदवार का समर्थन किया। हाँ इस पोस्ट के बाद मैं इस बारे में कुछ नहीं
लिखूंगा और न ही फेसबुक पर छक्कड़ के गीत गाऊंगा किन्तु आप से एक प्रार्थना करूँगा
कि अपने दिल पर हाथ रख कर पूछिए कि मौजूदा उम्मीदवारों में सब से उपयुक्त
उम्मीदवार कौनसा है। क्या आप उस के कदम में अपने कदम मिलायेंगे?
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