मित्रों,
पंचायतों और परिषद्/पालिकाओं के चुनाव आखिर आ ही पहुंचे। काफी लम्बा इंतजार करवा
दिया, बहुत से भावी उम्मीदवार तो दारू पिला-पिला के दिवालिया हो गए। जैसा हमेशा
होता आया है चुनावी मौसम में समाजसेवक जैसे जमीन की दरारों में से निकाल कर आ जाते
हैं। हालत इस बार भी यही हैं। समाज सेवकों द्वारा जागरण करवाए जा रहे हैं, चिकित्सा कैम्प लगाये जा रहे हैं, दान
दिए जा रहे हैं! इस बार तो छह-छह महीने पर चुनाव हुए हैं। अगर यही गति बनी रहे तो
देश में न कोई बीमार रहेगा न कोई गरीब और न कोई ‘प्यासा’! अब सोचने वाली बात यह है
कि इन समाजसेवियों और पोस्टरबाजों के बीच आप कहाँ हैं? क्या आप भी सरपंच/पार्षद
समर्थक, विरोधी और गुट निरपेक्ष तीन खेमों में से किसी एक में शामिल हैं? अगर ऐसा
है तो तैयार हो जाइए भ्रष्टाचार में लिप्त पालिकाओं और पंचायतों के लिए! आप शायद
नहीं भूले होंगे कि हमारी परिषद् के पार्षद 10 से 20 लाख प्रति पार्षद बिके थे!
क्या इस बार हम फिर से ऐसे जनप्रतिनिधि चुनने वाले हैं? जो उम्मीदवार ‘डोले’ बना
रहे हैं उन से तो ऐसा ही लगता है। अभी समय है क्यों न हम ऐसे लोगों को चुनाव लड़ने
के लिए प्रेरित करें जो ईमानदार हों, जिन के पास विजन हो, कुछ करने की इच्छा रखते
हों, जो बिके नहीं। जाहिर बात है ऐसे लोग स्वयं आगे नहीं आएंगे बल्कि हमें प्रयास
करना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि अच्छे लोग चुनाव लड़ें। इस बात का ध्यान रखें
कि चुनाव का खर्च 5 हजार से ऊपर न जाए, फालतू पोस्टरबाजी न हो, शराब न चले, हलवा
पूरी न हो। यह बिलकुल संभव है और किया जाना चाहिए। मुझे तथा अन्य साथियों को इस
पोस्ट पर आपकी राय का और आपके सुझावों का
इंतज़ार रहेगा।
हम आए
मैदान में तो हम बताएँगे, न सर कटायेंगे अपना, न झुकायेंगे।
खुली
फ़जाओं में, हम तुम को आजमाएंगे।।