मित्रों नारनौल में चुनाव का अखाड़ा सज गया है। पहलवान अपने-अपने लंगोट
कस रहे हैं। ‘...का बटन दबाईये और ....को विजयी बनाईये’ का शोर एक ही डबिंग आर्टिस्ट
की आवाज में दिन भर सुनाई पड़ रहा है। एक नामचीन उम्मीदवार जिन्होंने पिछले पांच
साल सिर्फ पैसा बटोरने में ही निकाल दिए अनमने ढंग से फिर सामने हैं तो दूसरे ईश्वर
की कृपा और ईश्वरीय स्वरुप व्यक्ति से अमरत्व का वरदान ले कर मौजूद हैं। तो एक
पारिवारिक पार्टी ने परिवारवाद में आस्था जताते हुए घर-गृहस्ती में लगी महिला का
चौका चूल्हा छुड़ा कर चुनावी आग में झोंक दिया है। एक उम्मीदवार जिन की सारी उम्र
सार्वजनिक जगहों पर कब्ज़ा करने में गुजर गयी वो भ्रष्टाचार से मुक्ति की बात कर
रहे हैं। एक श्रीमान योग्यता की कसौटी पर सब को कसने पर जोर दे रहे हैं तो एक धनी ‘समाज
सेवी’ ने समाजसेवी का चोला उतार कर नेताजी का खोल ओढ़ लिया है और पैसा पानी की तरह
बहा रहे हैं। वहीँ एक बंधु अपनी महिला कर्मचारी के शोषण के आरोप में जेलयात्रा का
इंतजार करते पार्टी प्रमुख के धन से हलवा-पूरी और अन्य ‘आवश्यक सामग्री’ उपलब्ध
करवाते हुए हरियाणा की ‘तकदीर’ बदलने का सपना दिखने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में
बेवडों को मग्गड़ मारे, नशे में टुल्ल ‘साले ये चुनाव तो हर छह महीने में होने
चाहिए’ कहते हुए हर मोड़ पर सुना जा सकता है। हमेशा की तरह मूल मुद्दे फिर हवा हो
गए हैं और हर उम्मीदवार को अपनी जाति के वोटरों को रिझाते देखा जा सकता है। सोशल
मीडिया पर भी चापलूसों की फ़ौज अपने आकाओं के महिमामंडन में लगी है। इस बीच एक
मित्र ने एक लघु कथा भेजी है।
एक बार एक हंस और हंसिनी हरिद्वार के
सुरम्य वातावरण से भटकते हुए उजड़े, वीरान और
रेगिस्तान के इलाके में आ गये! हंसिनी ने हंस को कहा कि ये किस उजड़े इलाके में आ
गये हैं? यहाँ न तो जल है, न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं! यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल
हो जायेगा ! भटकते-भटकते शाम हो गयी तो हंस ने हंसिनी से कहा कि किसी तरह आज की रात
बिता लो, सुबह हम लोग हरिद्वार लौट चलेंगे ! रात
हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस और हंसिनी रुके थे उस पर एक उल्लू बैठा था। वह जोर
जोर से चिल्लाने लगा। हंसिनी ने हंस से कहा, अरे यहाँ
तो रात में सो भी नहीं सकते। ये उल्लू चिल्ला रहा है। हंस ने फिर हंसिनी को समझाया
कि किसी तरह रात काट लो, मुझे अब
समझ में आ गया है कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजड़ा रहेगा ही। पेड़
पर बैठा उल्लू दोनों कि बात सुन रहा था। सुबह हुई, उल्लू नीचे आया और उसने कहा कि हंस भाई मेरी वजह से आपको रात में
तकलीफ हुई, मुझे माफ़ कर दो। हंस ने कहा, कोई बात नही भैया, आपका
धन्यवाद! यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा, पीछे से उल्लू चिल्लाया, अरे हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो। हंस चौंका, उसने कहा, आपकी
पत्नी? अरे भाई, यह हंसिनी है, मेरी
पत्नी है, मेरे साथ आई थी, मेरे साथ जा रही है! उल्लू ने कहा, खामोश रहो, ये मेरी
पत्नी है।दोनों के बीच विवाद बढ़ गया। पूरे इलाके के लोग इक्कठा हो गये। कई गावों
की जनता बैठी। पंचायत बुलाई गयी। पंच लोग भी आ गये ! बोले, भाई किस बात का विवाद है ? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है
और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! लम्बी बैठक और पंचायत के बाद पंच लोग
किनारे हो गये और कहा कि भाई बात तो यह सही है कि हंसिनी हंस की ही पत्नी है, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो अभी थोड़ी देर में इस गाँव से चले
जायेंगे। हमारे बीच में तो उल्लू को ही रहना है। इसलिए फैसला उल्लू के ही हक़ में
ही सुनाना है ! फिर पंचों ने अपना फैसला सुनाया और कहा कि सारे तथ्यों और सबूतों की
जांच करने के बाद यह पंचायत इस नतीजे पर
पहुंची है कि हंसिनी उल्लू की पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़ने का हुक्म
दिया जाता है ! यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोने, चीखने और चिल्लाने लगा कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया !
उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते- चीखते जब वहआगे बढ़ने लगा तो उल्लू ने आवाज
लगाई -ऐ मित्र हंस, रुको !
हंस ने रोते हुए कहा कि भैया, अब क्या
करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ही ली, अब जान भी लोगे ? उल्लू ने
कहा, नहीं मित्र, ये हंसिनी आपकी पत्नी थी, है और रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो आपने अपनी
पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है
! मित्र, ये इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए नहीं
है कि यहाँ उल्लू रहता है !यह इलाका उजड़ा और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ पर ऐसे
पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में फैसला सुनाते हैं !
साथियों बिना
विजन, बिना आस्था, बिना त्याग, बिना चरित्र, बिना शिक्षा, बिना ज्ञान, सिर्फ जाति,
धन, पार्टी के बल पर अनेकों उल्लू आपके सामने हैं अब आप सोचिये कि आप किस उल्लू के
हक़ में फैसला देने वाले हैं!
No comments:
Post a Comment
your comment please