अंग्रेजों के भारत पर शासन करने के अनेक हथियारों में से एक महत्वपूर्ण हथियार था जाति आधारित रेजिमेंट। इन सेनाओं को उन्होंने बड़ी चतुराई से भारत में इस्तेमाल किया। पहले भीमा कोरेगांव में पेशवा के खिलाफ महार लगाये, इधर बीसवीं सदी में जलियांवाला नरसंहार के लिए गोरखा रेजीमेंट लगाई तो उधर 1857 के जेहाद को कुचलने के लिए सिक्ख सेनाओं का इस्तेमाल किया। 1857 का 'जिहाद' इसलिए क्योंकि बिहार और बंगाल के पुरबिया सैनिकों के अलावा इस विद्रोह में सब इस्लामी ही था। पेशवा पहले ही कंगाल हो चुके थे और झांसी की छोटी सी रियासत का कोई खास वजूद न था। ग्वालियर, बड़ौदा, इंदौर जैसे मराठों के बड़े रजवाड़े और पूरा राजपूताना लगभग तटस्थ रहा, जब कि सिक्खों ने तो पूरा पूरा अंग्रेजों का साथ दिया। और ऐसा होता भी क्यों ना! अगर अंग्रेज भागता तो दिल्ली पर राज किसका आना था! मुसलमानों का ही न? मुस्लिम अति को ना तो मराठे भूले थे और ना ही राजपूत। 1857 के रूप में मराठों को पानीपत के मैदानों से अपनी महिलाओं का क्रंदन सुनाई दे रहा था, तो राजपूताना जौहर की ज्वाला की तपत फिर से महसूस करने लगा था। जाटों ने भी गोकुला के पूजनीय शरीर के टुकड़े भुलाए न थे। सिखों को भी तो अपने गुरुओं पर हुए अत्याचार अब तक याद थे, बल्कि उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर अंग्रेजों को दिल्ली जीत कर दी। नारनौल के पास नसीबपुर के मैदान में हुई लड़ाई में नाम मात्र के अंग्रेज सैनिकों से मिल कर लड़ने वाली सिक्ख सेनाओं ने झज्जर के नवाब की सेनाओं को शिकस्त दी थी। विडंबना देखिए कि जाति आधारित सेना की सफल अंग्रेजी प्रयोगशाला, उसी नसीबपुर के मैदान से एक और जाति आधारित रेजीमेंट की मांग के आंदोलन का प्रारंभ हुआ है और उसी दिल्ली में स्थित संसद में, उन ऊंचाईयों से चंद फर्लांग दूर जिन से सिख और गोरखे तोपों से नगर की दीवारों पर कहर ढा रहे थे, एक सांसद इस मांग का पुरजोर समर्थन कर रहा है।वैसे भी जब सिख, राजपूत, महार, डोगरा, जाट आदि रेजीमेंट हैं तो अहीर रेजिमेंट न बनाने की अंग्रेजों की गलती को क्यों ना दुरुस्त कर ही लिया जाए। साथ ही गूजर रेजीमेंट, बनिया रेजीमेंट, खाती रेजीमेंट, कुर्मी रेजिमेंट, नायर रेजीमेंट और उस से भी पहले ब्राह्मण रेजीमेंट क्यों न बनाई जाए, आखिर परमवीर चक्र विजेताओं में ब्राह्मणों की संख्या तीसरे नंबर पर है।यही होता है जब आप स्वयं को अपने गौरवशाली अतीत से अलग कर लेते हैं। धर्म को अफीम कहने वाला वामपंथ अपनी भांग आपको पिला कर सफलतापूर्वक आप से आपके महापुरुषों को पराया बता कर कचरे में फिंकवा देता है। फिर शुरू होता है महापुरुष तलाशने का दौर, तो कभी आप उस कचरे की तरफ दौड़ते हैं और कभी वामपंथ की और। वैसे भी मनोवैज्ञानिकों के अनुसार शारीरिक, सुरक्षा और अपनेपन की आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद मनुष्य को सम्मान की आवश्यकता महसूस होती है। और हां अहीर रेजिमेंट की मांग को मेरा समर्थन है और भविष्य में उठने वाली अन्य जातियों की रेजिमेंटों को मेरा अग्रिम समर्थन साथ ही अंग्रेज द्वारा भारत में छोड़े गए अजर अमर प्लास्टिक के कीड़े के सफल इंप्लांट के लिए फिरंगी को सात सलाम। #RSC
Change is the rule of nature... if not done in positive direction... it takes its own course
Saturday, 17 December 2022
अहीर रेजिमेंट
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