जिस प्रकार सिखों ने गुरुओं के इतिहास और बलिदानों को स्मृति में रखा है उनकी इस के लिए प्रशंसा की जानी चाहिए जबकि बाकी सनातन समाज ने इस स्तर की कोशिश नहीं की। इसे सिखों का ही प्रयास कहा जाना चाहिए कि आज गुरु गोविंद सिंह के परिवार के बलिदान के विषय में सारा भारत जानता है, और देश का प्रधानमंत्री उन पर 25 मिनट का भाषण देता है। वरना ऐसे कितने ही बलिदान भूल जाने दिए गए। यदि अपने शिष्यों और अपने पुत्रों में कोई फर्क ना मानना गुरुधर्म है तो "जो बोले सो निहाल" शिष्य के समर्पण की पराकाष्ठा है। यदि दो नन्हे बालक आतताइयों के सामने समर्पण करने से इंकार कर देते हैं तो सोचिए उस मां के बारे में जिसने उन्हें इतना मजबूत बनाया, वो दादी जिसने अपने पति और अपनी संतानो का बलिदान कर दिया। निसंदेह इस राष्ट्र की आत्मा की सही अर्थों में किसी ने रक्षा की है तो महिलाओं ने। उन मांओं ने, जिन्होंने अपने नौनिहालों को अपने दूध की लाज का वास्ता देकर शत्रु से लड़ने भेज दिया। उन वीरांगनाओं ने जो जलती ज्वाला में सिर्फ इसलिए प्रवेश कर गई कि उनकी राख समाज के मस्तक पर सजी रहकर उसे आत्मबल प्रदान करती रहे। उन पत्नियों ने जिन्होंने कभी आरती के थाल सजाकर अपने पतियों को विदा किया, तो कभी अपने मस्तक थाल में सजाकर प्रस्तुत कर दिए, तो कभी युद्ध से मुंह मोड़ कर आए पतियों के लिए घर के दरवाजे बंद कर दिए।
पंजाब क्षेत्र में नित नए इस्लामी हमलों से लड़ते अधिकतर क्षत्रिय बलिदान हो गए और बचे-खुचे अन्य व्यवसायों में लग गए। जिस राजस्थान की माटी का दीपक शिवाजी के नाम से दक्कन में प्रकाश फैला रहा था और जो कालांतर में मराठों की मशाल बन गया, उसी राजस्थान के वीरों ने गुरु की सेवा में आकर पंजाब की धरती पर क्षत्रियत्व जगाया। छठे गुरु को शस्त्र विद्या सिखाने का क्रम मारवाड़ के राठौड़ राव जैता और राव सिगड़ा से प्रारंभ होकर गुरु गोविंद सिंह को बज्जर सिंह राठौड़ से होता हुआ आलम सिंह चौहान द्वारा साहिबजादों तक पहुंचा। गुरु गोविंद सिंह ने शस्त्र के महत्व को गहराई से समझा और इन योद्धाओं की मदद से पंजाब में क्षत्रियत्व पुनर्जीवित किया। फिर समाज का महत्व बताते हुए कहा "तुम खालसे हो, हिंदू धर्म। पंथ नानक को, छत्री करम।।" सामान्य लोगों को एक मजबूत सेना में खड़े करने का कारनामा करने के बाद ही तो उन्होंने कहा था "चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं तां गोविंद सिंह नाम कहाऊँ।"
कहानी इतनी लंबी करने का कारण यही है कि महापुरुष पैदा करने में पूरे समाज का योगदान होता है और जो समाज अपने महापुरुषों को विस्मृत नहीं होने देता वही फिर से महापुरुष पैदा करता है। इस दिशा में सिख सबको राह दिखा रहे हैं पर देखते हैं शेष सनातन समाज कब समझता है। #RSC
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