कोरिया वास में नवनिर्मित मेडिकल कॉलेज का नाम बदलने की कवायद में लगे वोट बैंक की मुहिम के बीच खबर है कि च्यवन ऋषि की जाति मिल गई है। पर च्यवन ऋषि का नाम तो वेदों की ऋचाओं में भी है! फिर तो यह राम जन्म से भी पहले की बात है। अर्थात जिस काल में उन्होंने ढोसी पर्वत तथा उसके आसपास के वनों में विचरण करते चवनप्राश का आविष्कार किया होगा तब जातियां अस्तित्व में भी नहीं आईं थीं। फिर भी इस आविष्कार के आविष्कारकों के लिए बधाई बनती है। च्यवन ऋषि महर्षि भृगु के पुत्र थे, तो इस हिसाब से वह भृगु या भार्गव हुए। किंतु भृगु और भार्गव गोत्र तो बहुत सारी जातियां में पाया जाता है। वैसे ही जैसे कश्यप, भारद्वाज, गौतम, गर्ग इत्यादि, स्वयं मेरा अर्थात चौहानों का गोत्र भी वत्स है। मुझे नहीं पता कि कितने लोगों को जानकारी है कि विवाह के लिए 'मिल जाने' वाले गौत असल में गौत्र नहीं हैं। चलिए इस घालमेल का ठीकरा भी ब्राह्मणों के सर पर ही फोड़ कर पुनः च्यवनप्राश के आविष्कारक की जाति के आविष्कारकों को शुभकामनाएं प्रदान करते हैं।
मेडिकल कॉलेज का नाम बदलकर राव तुलाराम के नाम पर रखने के समर्थकों में नारनौल के तीसरी बार के विधायक नए-नए शामिल हुए हैं। इससे पहले स्थानीय सांसद और नांगल चौधरी की विधायक भी महाविद्यालय का नाम बदलकर राव तुलाराम के नाम पर रखने की वकालत कर चुके हैं। मेरा दावा है कि ये लोग नसीबपुर में लड़े गए युद्ध में शामिल सभी पक्षों का नाम तक नहीं बता सकते। वैसे राव तुलाराम के नाम पर किसी को आपत्ति क्यों होगी भला! च्यवन ऋषि की तरह राव तुलाराम भी तो सबके हैं! दिक्कत राव तुलाराम से नहीं वोट बैंक राजनीति की गुंडागर्दी से है। चिकित्सा क्षेत्र में योगदान देने वाले च्यवन ऋषि के आश्रम क्षेत्र में बनने वाले चिकित्सा संस्थान का नाम उनके नाम पर रखना बिल्कुल सार्थक तथा सम्यक है। दूसरी बात जब गजट नोटिफिकेशन द्वारा यह नाम रखना तय हो चुका था तब इस विषय में विवाद करना ही तर्कसंगत नहीं था। भविष्य में किसी और संस्था का नाम हम उन पर रख सकते हैं! इन सब बातों से सहमत कुछ लोग भाईचारा बचाने की दुहाई दे कर कन्नी काट गए। वैसे बचाना दुनिया के सब से दुष्कर कार्यों में से एक है। बचपन में आखिर में खाने के लिए अच्छे- अच्छे बेर बचाते थे तो कोई टपक पड़ता और उन्हें चट कर जाता। आज पैसा बचाने के लिए लाख जतन करते हैं पर बात बनती ही नहीं। भाईचारा बचाने के लिए तो केरल के एक राजा ने भारत की सबसे पहली मस्जिद बनाई थी और उसी केरल में आज अस्तित्व बचाने के लाले पड़ रहे हैं। वैसे भाईचारा बचाने का एक बम पिलाट आईडिया है मेरे पास! मेडिकल कॉलेज का नाम राव तुलाराम के नाम पर रख दिया जाए और नसीबपुर के शहीद स्मारक का नाम बदल कर 'शहीद' च्यवन ऋषि स्मारक रख दिया जाए।
अंत में हफ़ीज़ जालंधरी की चार पंक्तियां -
जो भी है सूरत-ए-हालात कहो चुप न रहो।
रात अगर है तो उसे रात कहो चुप न रहो।।
घेर लाया है अँधेरों में हमें कौन 'हफ़ीज़'।
आओ कहने की है जो बात कहो चुप न रहो।।
जय हिंद
राकेश चौहान
#RSC
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