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Wednesday, 28 May 2025

ये बाप मुझे देदे ठाकुर

 राजपूतों, 

आपका सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि आपके पास एक गौरवशाली अतीत है तथा उस से भी बड़ा यह है कि आपके कंधे उस अतीत का बोझ नहीं उठा पा रहे। पूरे देश में जहां-जहां भी आप लोग हैं एक न एक नवधनाढ्य जाति आप के विरुद्ध है, उस जाति का नाम अलग हो सकता है लेकिन उसके तरीके हैं एक जैसे ही। उस के पास जमीन है, धन है, शिक्षा है, नौकरियां हैं, व्यापार है, संख्या है, मक्कारी है, आरक्षण है, सरकारी योजनाएं हैं, राजनीति में दखल है और राज में हिस्सेदारी है। है नहीं तो आपके जैसा अतीत और अब इस जाति की नजर आपके अतीत पर है। जहां वे घपला कर सकते हैं वे कर रहे हैं, जहां नहीं कर सकते वहां आप के बुजुर्गों को लांछित कर रहे। आपके महापुरुषों पर अधिकार करने की उनकी तैयारी देखी है आपने! उन्होंने इतिहास गढ़ कर बाकायदा एक श्रृंखला तैयार की और मिहिर भोज से शुरू होकर, पृथ्वीराज चौहान, अनंगपाल तोमर, सुहेलदेव बैंस, महाराणा प्रताप और दुर्गादास राठौड़ तक पहुंच गए! अब आप अपना हाल देखिए! वे मूर्ति लगवाते हैं और नाम लिखते हैं "गूजर" सम्राट मिहिर भोज! और आप "क्षत्रिय" सम्राट मिहिर भोज पर फैसला कर लेते हैं! वे कहते हैं कि अगर पृथ्वीराज चौहान को राजपूत दिखाया तो वह फिल्म नहीं चलने देंगे और बेचारा डायरेक्टर डर के मारे पूरी फिल्म में "राजपूत योद्धा" की जगह "हिंदू" शब्द प्रयोग कर के फिल्म फ्लॉप करवा लेता है! जो लोग लड़ाई में युद्ध घोष का महत्व समझते हैं वे इस डायलूशन से हुई हानि आसानी से समझ जाएंगे।

आप के हिस्से के हर प्रकार के विरोध का जिम्मा शायद करणी सेना ने उठा लिया है! किन्तु उनकी युवा शक्ति इतिहास के सामान्य ज्ञानाभाव में नाली में बह जाती है। जैसा कि हाल ही में राणा सांगा के विरुद्ध टिप्पणी में हुआ! आप लोग समाज की बौद्धिक भूख शांत नहीं कर पाए कि आप का पक्ष क्या है और करणी सेना का सारा विरोध लंगूरों की उछल कूद बनकर रह गया। याद रखिए किसी भी विवाद में दो पक्ष तो होते ही हैं किंतु विवाद के बाहर एक तीसरा पक्ष भी होता है जो यह निर्णय करता है कि क्या सही है तथा क्या गलत! उस तीसरे पक्ष का नाम समाज है और उसे संतुष्ट करना सबसे अधिक आवश्यक होता है। देख रहे हैं ना कि सरकार किस तरह विदेशों में युद्ध से संबंधित पक्ष रखने के लिए प्रतिनिधिमंडल भेज रही है।

जरा गौर करिए कि कैसे एक घाघ खिलाड़ी की तरह हनुमान बेनीवाल ने अपनी राजनीति की डगमगाती नैया 15 शब्दों में किनारे लगा ली। उसे पता है कि उसे कहां बांस गाढ़ना है कि कुछ कलाबाजियां खाते लंगूर उसमें अपना पृष्ठभाग फंसा कर जाटों को उसके पीछे लामबंद कर देंगे। अब वह नर्म पड़ गया किंतु ये भी उसकी स्ट्रैटजी का हिस्सा है। इस विवाद से उपजी फ़सल वह काट कर अपने स्थान पर वापस आ चुका। समझिए कि ये राजनीति की बार बालाएं हैं जिनका उद्देश्य सिर्फ उत्तेजना पैदा करना है। इनका शिकार मत बनिए। इससे पहले राष्ट्रीय कुश्ती संघ पर कब्जे के लिए कुछ लोगों ने बृजभूषण पर इल्जाम लगाकर मामले को सफलता पूर्वक जाट बनाम राजपूत कर दिया था। जबकि संपूर्ण कुश्ती जगत पहले दिन से ही यह बात जानता था कि यह इल्जाम झूठे हैं, जो कि सिद्ध भी हो रहा है। बृजभूषण बरी भी हो जाएंगे पर आपने जो खोया उसका क्या? आप क्यों नहीं स्वयं को इस मामले से पहले दिन ही अलग कर पाए? हजारों साल हुए पर राजनीति की कुटिल चालों के चक्रव्यूह में आप आज भी अभिमन्यु ही हैं। 

करणी सेना के प्रवक्ताओं पर गौर करिए, वे टीवी की डिबेट में भी तर्क व साक्ष्य प्रस्तुत करने की बजाय मरने - मारने की बात करते हैं। इतिहास पर उनकी कोई उल्लेखनीय पकड़ नहीं होती। हिस्टोरिओग्राफ़ी पर उनका ज्ञान शून्य है। उनके प्रतिद्वंद्वी राजपूतों के मुगलों से वैवाहिक रिश्ते बनाने की बात उछालते हैं तो वे लंगड़े लूले तर्क देते हैं। करणी सेना का एक भी प्रवक्ता यह कहते नहीं सुनाई देता कि जिस काल में राजा की बेटी भी सुरक्षित नहीं थी उस काल में आम बेटियों का क्या हाल रहा होगा। हनुमान बेनीवाल जैसों के सवालों के जवाब में कोई भी राजपूत, जाट कन्याओं के मुगलों/मुस्लिमों से विवाह का हवाला नहीं देता जबकि ऐतिहासिक दस्तावेजों में ऐसी घटनाएं भरी पड़ीं हैं। किन्तु समस्या यह है कि कोई अध्ययन नहीं करता। करणी सेना के नेता स्वयं तो चमकना चाहते हैं किन्तु बौद्धिक क्षत्रित्व का उनके पास न तो सामान है और न ही योजना। आज जरूरत तो बौद्धिक क्षत्रियों की है।

एक बात समझ लीजिए कि आप आसमान से नहीं टपके हैं। एक समय पर तो जाति अस्तित्व में ही नहीं थीं और वर्ण भी कर्मानुसार थे। जाति व्यवस्था के आने और उसके दृढ़ होने का जो भी कारण रहा हो, लेकिन अनेकों जातियों की एक पूर्वज से उत्पत्ति से इनकार नहीं किया जा सकता। इतना अवश्य है कि राजपूत काल से हाल ही तक राजपूत पुरुष से अन्य जाति की कन्या का विवाह होने पर उस दंपत्ति की संतान को राजपूत जाति में प्रवेश नहीं था तथा वह कन्या की जाति में ही जाती थी। उसके कम से कम दो विशिष्ट कारण थे, कि एक तो इस्लामिक हमलों से बचने के लिए रक्त शुद्धता के जो मापदंड समाज ने बनाए थे उन पर खरा रहना। दूसरा सत्ता और अधिकार में अंधा होकर कोई भी समर्थ व्यक्ति, आम महिलाओं पर अतिचार न करे। अतः जिस स्त्री से उसे प्रेम था उससे उसे विवाह करने की अनुमति तो थी किंतु इस प्रकार के विवाह से उत्पन्न संतान को पिता की राजपूती ग्रहण करने का अधिकार नहीं था तथा उसे पिता के गौत्र या किसी नए गौत्र के साथ कन्या की जाति में प्रवेश दिया जाता था। एक ओर तो यह एक सामान्य महिला की शोषण के विरुद्ध सुरक्षा थी दूसरी ओर यह सामाजिक संकट से बचने का सम्मानजनक उपचार था। ऐसी संतान का ओहदा राजपूत पिता की जाति से थोड़ा कम किंतु माता की जाति से ऊंचा रहता था। अनेक जातियों के सैंकड़ों ऐसे वंशों के साहित्यिक रिकॉर्ड के साथ - साथ, वंशावलियों, जनश्रुतियों, लोकगीतों में प्रमाण मौजूद हैं। तथा आज भी इन संतानों का ओहदा अपनी जाति में सामान्य से ऊंचा ही है। इन गौत्रों का सदा ही पितृ राजपूत वंश से भाईचारा रहा है। उस भाई चारे को कायम रखिए, स्वयं को श्रेष्ठ दिखाने के लिए लांछित मत करिए।

जब एक राजनीतिक दल ने हिंदुओं को अपने पीछे लाम बंद कर दिया है तो दूसरे निश्चय ही हिंदुओं को जातियों में बांट कर अपने साथ लाने का प्रयास करेंगे। आने वाले समय में यह प्रयास और भी शिद्दत से होंगे। अच्छे से समझ लीजिए इस तरह के हमले और अधिक होंगे तथा कड़वाहट और बढ़ेगी। आप लोगों को अपना होमवर्क सही से करना है। जो- जो लांछन ये आपके ऊपर लगाते हैं वे स्वतः ही उनके ऊपर लग जाते हैं क्योंकि भारतीय समाज ने एक जैसे ही कष्ट समरूप सहन किए हैं। बौद्धिक क्षत्रिय बनिए अपना ज्ञान बढ़ाइए। लगभग सभी प्रमाणिक ऐतिहासिक पुस्तकें इंटरनेट पर मौजूद हैं। अध्ययन करिए समझ लीजिए जो जितना बुरा आपके लिए कह रहा है उससे कई गुना बुरा उसके लिए लिखा है। यह ज्ञान किसी को अपमानित करने के लिए नहीं अर्जित करना बल्कि यह ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर परोसे गए झूठ को सच से अलग करेगा। आपके पुरखों ने जो भी अर्जित किया वह अपने शौर्य से अर्जित किया था। उसके लिए उन्होंने आरक्षण नहीं मांगा चुनाव नहीं लड़े। और शौर्य आत्म बल से पैदा होता है, आत्म बल मजबूत करिए। करणी सेना जैसे संगठन व्यर्थ के सर्कस बंद कर के गांव - गांव में शारीरिक और आत्म बल बढ़ाने के केंद्र स्थापित करें। पुस्तकाल खुलवाएं, बालकों को शिक्षा, खेल, राजनीति और रोजगार में भागीदारी के लिए तैयार करें। शारीरिक, आत्मिक तथा बौद्धिक क्षत्रिय बनाएं वरना आपका सब कुछ हड़पने के बाद गिद्धों की नज़र आप के बाप पर है!

जय माता जी की

राकेश चौहान

#RSC 

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