रामजीलाल सुमन और हनुमान बेनीवाल!
कैसी विडम्बना है कि एक के नाम में राम है और दूसरे के में हनुमान!
ऐसे में काका हाथरसी की एक कविता याद आ उठती है।
"नाम रूप के भेद पर कभी किया है ग़ौर।
नाम मिला कुछ और तो शक्ल - अक्ल कुछ और।।"
चलिए रामजीलाल को राम के हवाले कर के आज हनुमान बेनीवाल की बात करते हैं।
कहते हैं कि भारमल ने अपनी असली पुत्री का विवाह अकबर से नहीं किया। जिस हरका बाई का विवाह उस ने अकबर के साथ किया वह उसकी अपनी पुत्री थी या नहीं, इस बहस में नहीं जायेंगे। अगर उसने कोई चाल चलकर दासी पुत्री का भी विवाह अकबर के साथ कर दिया होगा तो भी इस विवाह के कारण ही अनेक छोटे राज्यों और उनकी प्रजा का अस्तित्व संकट में आ गया। मुगल जिसके मर्जी आए उस के यहां डोला भेज देते थे। या तो बेटी दो या फिर युद्ध करो! इतनी ताकतवर सेना के सामने युद्ध मतलब हार, हजारों सैनिकों का बलिदान, सामान्य प्रजा में मारकाट, घरों में आगजनी और प्रजा की हजारों महिलाओं का शील हरण। बेचारा राजा प्रजा की हजारों बेटियों का शील बचाने के लिए एक बेटी का बलिदान कर देता था।
मुसलमानों से वैवाहिक संबंध किसी भी काल में अच्छी नजर से नहीं देखे गए। अगर ऐसा ना होता तो जिंदा महिलाएं जौहर की आग में ना प्रवेश करतीं! वीरांगनाएं अपने सिर थाली में सजा कर भेंट में न देतीं! युद्ध से मुंह मोड़ कर आए पतियों के लिए घर के दरवाजे बंद न होते! जौहर न होते, साके न होते! जौहर तो भारत के इतिहास का सबसे पीड़ादायक अध्याय है! जीवित जलना संभवतः सब से कष्टदाई मृत्यु है! सबसे पहले त्वचा जलती है, कोशिकाएं फूलती हैं, नसें फटती हैं और मृत्यु आने में तो 7- 8 मिनट लगते हैं, सिर कटने में तो एक पल ही लगता है। कितनी कठिन मृत्यु! सिर्फ इसलिए कि जौहर की उन चिताओं की राख का चंदन समाज के माथे पे सज कर धर्म रक्षा की राह दिखाता रहे कि धर्म रक्षकों हमारे बलिदान की लाज रखना! ऐसे बचा है सनातन धर्म! वरना ईराक, ईरान, सीरिया, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगाल, कश्मीर... सब कुछ तो निगल गए दुष्ट! पूर्वजों ने न जाने कैसे - कैसे धर्म को बचाया है !
निश्चित ही मुगलों को बेटी ब्याहना कभी गौरव का प्रश्न नहीं था। इस बात को "किशनगढ़ की राजकुमारी चारुमति - राणा राज सिंह" तथा "कल्ला राय मलोत" के किस्सों से समझा जा सकता है। यदि गर्व की बात होती तो फर्रूखसियर को अपदस्थ कर के अजीत सिंह अपनी पुत्री को साथ ले जा कर उसकी शुद्धि करके सनातन धर्म में वापसी न करवाता। यदि यह गौरव का विषय होता तो वे पूर्वज मुगल और मुस्लिम कन्याओं से विवाह भी करते। जो कि नहीं हुआ! यदि कभी हुआ भी तो उस कन्या से उत्पन्न संतान न तो राजपूतों में अपनाई गई और न ही हिंदू धर्म में, बल्कि उन्हें मुस्लिम ही बनना पड़ा!
हालांकि व्यक्तिगत स्तर पर कुछ अपवाद भी हुए होंगे, जो स्वाभाविक हैं। कुछ लोगों ने लालच में आ कर धर्म परिवर्तन भी किया है और कन्याओं के विवाह भी विधर्मियों के साथ किए हैं। ऐसे व्यक्तिगत उदाहरण राजपूत या किसी एक जाति में न हो कर पूरे हिंदू समाज में हैं। यहां बात हनुमान बेनीवाल की हो रही है तो
कई जाटों ने अपनी बेटियों को नज़राने के तौर पर देकर मुगलों से ज़मींदारी भी हासिल की। इस तरह के जाटों को अकबरी, जहाँगीरी, शाहजहाँनी और औरंगज़ेबी जाटों के नाम से जाना जाता है, जो उसी मुगल बादशाह के नाम से संबंधित हैं, जिनके शासनकाल में इन परिवारों ने इस तरह के रिश्ते किए थे। यह तब और अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है जब राजपूतों के पास तो मुस्लिम आक्रमण के पहले से ही राज था किंतु मुगलों के सबसे बड़े लाभार्थी जाट थे जिन को मुगलों ने सबसे ज्यादा चौधराहटें बांटी थीं। असल में चौधरी पद ही मुगलों का बनाया हुआ है। निश्चय ही जाटों के लिए तो यह रिश्ते सीधे - सीधे लाभ प्राप्ति के थे। यह इसलिए अधिक प्रकाश में नहीं है क्योंकि एक तो आमतौर पर यह रिश्ते मुगल घराने में न होकर मुगलों के छोटे सरदारों के साथ हुआ करते, दूसरे, यह नैरेटिव वामपंथी व्यभिचार को रास नहीं आता। लेकिन निश्चित मानिए कि पहले ब्राह्मण और अब राजपूतों को हाशिए पर पहुंचाने के बाद अगला निशाना जाट ही हैं। बारी सब की आएगी क्योंकि आप हजारों सालों से अपना अस्तित्व बचाए हुए हैं और वामपंथ को यह गवारा नहीं!
इतिहास के कुछ पन्ने सुनहरे हैं तो कुछ स्याह हैं! इसे बिना किसी पूर्वाग्रह के पढ़ा जाना आवश्यक है। चाहे कोई भी जाति हो उस समय की परिस्थिति के अनुसार एक समाज के रूप मे उन्होंने अपना सर्वोत्तम किया! तभी तो आज भी हम 100 करोड़ हैं! कहीं- कहीं किसी के निजी स्वार्थ हो सकते हैं किन्तु एक समाज के रूप मे क्या हुआ ये देखना आवश्यक है !
जातिवाद के जिस घोड़े पर सवार हो कर हनुमान बेनीवाल को राजनीतिक लाभ मिला था अब उसका बुलबुला फूट चुका। इतिहास के साथ व्यभिचार कर के वह फिर जातिवाद की राजनीति गर्माना चाह रहा है। इस में सब से आवश्यक है कि तथ्यों से अवगत रहें।
क्रमशः
राकेश चौहान
#RSC
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