सरस्वती स्कूल में पढ़ते थे तो शाखा में जाना स्वतः ही हो गया। विक्रम जी यादव, सुभाष जी सैनी, अशोक जी वर्मा, एक दो नाम भूल रहा हूंगा, यह लोग शाखा लगाते थे। यह वह समय था जब किसी भी राज्य में भाजपा की सरकार एक बार भी नहीं बनी थी। 30- 35 बच्चे, मेरी उम्र के, शाखा में आया करते। पूरा गणवेश तो पहने किसी को कभी देखा हो याद नहीं, हां विक्रम जी और सुभाष जी खाकी निक्कर और सफेद कमीज़ में ज़रूर आया करते। भगवा ध्वज के सामने प्रार्थना, जिसकी हमें शुरू की 3-4 पंक्तियां ही आतीं थीं 'नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे.... नमस्ते नमस्ते' तक। किसान और लोमड़ी, घोड़ा पटक, रुमाल झपट जैसे खेल खेलते और फिर बैठ कर किसी महापुरुष की कहानी! संसाधन नहीं थे पर जज़्बा था। आज समझ आता है कि आरएसएस को यहां तक लाने के लिए लाखों स्वयंसेवकों ने कितना संघर्ष किया होगा। आज आरएसएस को 100 साल पूरे हो गए। सही है परिवर्तन आने में सौ साल तो लगते ही हैं। नगर में पूरे गणवेश में पथ संचलन हुआ, अच्छी खासी तादात भी थी। लग रहा था कि शहर के सभी सेवक आज स्वयंसेवक हैं। वैसे भी राज भाजपा का है तो सब संघी ही हैं। किंतु संघ की ताकत पथ संचलन नहीं बल्कि शाखा है। जब आरएसएस कुछ नहीं थी तब भी एकमात्र शाखा में 30-35 बच्चे आते थे। मुझे नहीं लगता आज नगर में लगने वाली चार-पांच शाखाओं में कुल मिलाकर भी इतने बच्चे आते होंगे। 12 साल जैसा हुआ राज्य में हिंदू संस्कृति को पुनः जागृत करने का दावा करने वाली सरकार है किन्तु नारनौल के ज्ञात इतिहास के पहले बलिदानी राजा नूनकरण के जिस किले पर आरएसएस का कार्यक्रम हुआ वहां नूनकरण के नाम का एक पत्थर तक नहीं है।
Change is the rule of nature... if not done in positive direction... it takes its own course
Saturday, 11 October 2025
कांटी एक ऐतिहासिक गाँव
एक गधरसा छाप फेसबुक कमेंट में मुझ से बोला कि जब हिंदुओं को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाया गया तो तेरे पूर्वज कैसे बच गए ? उसे यह इतिहास बताना पड़ा।
बात तब की है जब मेरे पूर्वज कांटी गांव में नहीं आए थे बल्कि बरड़ोद में रहते थे।कुछ लोग मेरे पूर्वज, जो क्षेत्र के सामंत थे, के पास गए तथा फरियाद की कि मुसलमान जबरदस्ती एक ब्राह्मण कन्या का निकाह मुसलमान युवक से करना चाहते हैं। मेरे पूर्वज ने अपने एक पुत्र के साथ सैनिक टुकड़ी भेज दी तथा ब्राह्मण को विवाह की तारीख निश्चित करने का आदेश दे दिया। जब बारात आई तो वहां महिलाओं के वेश में सैनिक बैठे थे। लड़ाई हुई और सारे आतयातियों को मार कर समारोह स्थल में आग लगा दी। उसके बाद दोबारा हमले के डर से लोगों ने इस गांव में रहने से मना कर दिया तब मेरे बुजुर्ग ने राणा की उपाधि तथा क्षेत्र के गांव दे कर अपने पुत्र को स्थाई रूप से यहीं बसा दिया।
मुगल काल
मुगल काल में भारत दुनिया का सबसे अमीर देश था! यह एक अलग सेकुलरी चूर्ण है! निसंदेह उस वक्त भारत दुनिया का सबसे अमीर देश था। किंतु मुगल काल में जीडीपी दर कम हुई थी। 1000 ईस्वी में जहां यह 28% के आसपास थी मुगल काल में यह 22 से 24 परसेंट रही। नेगेटिव जीडीपी ग्रोथ का सीधा-सीधा अर्थ यह हुआ कि सरकारी खजाने में बढ़ोतरी हो रही थी लेकिन आम लोग गरीब हो रहे थे। मुगल काल में लैंड रिवेन्यू सबसे ज्यादा था। अकबर के समय में यह हालांकि आधिकारिक स्तर पर 33% था लेकिन इसकी असल वसूली 50% से भी ऊपर थी। अर्थात किसान की उपज का आधे से अधिक भाग सरकार वसूल कर रही थी।
Without lies Islam dies
बस यही फर्क है इस्लाम में और सनातन धर्म में। इस्लाम आपको कहता है कि आंख बंद करके मान लो और सनातन धर्म कहता है कि नहीं प्रमाण मांगो, शंका उठाओ, बहस करो। कुरान कहती है कि ये है खुदा का आखिरी कलाम और उसके बाद ढक्कन बंद! किंतु गीता कहती है कि युद्ध भूमि में खड़े होकर भी आपको स्वयं भगवान से अपनी शंका का समाधान करने का हक है! प्रश्न पूछ रे अर्जुन! नास्तिक दर्शन- आस्तिक दर्शन, वाम मार्ग-दक्षिण मार्ग, नानक पंथी, दादू पंथी, कबीर पंथी, सतनामी, पौराणिक, आर्यसमाजी ... कितनी धाराएं! कितना ज्ञान! कितने प्रश्न! कितने समाधान! कोई किसी के खून का प्यासा नहीं! कोई किसी को काफिर कह के नहीं मार रहा। मुसलमान की पढ़ाई भी कुरान की तर्ज पर हो रही है। कोई सवाल नहीं कोई भी विवेचना नहीं, बस मान लो! किंतु कम से कम भारत में तो इसका कारण शिक्षा व्यवस्था ही है कि सच्चाई जानबूझकर दबा दी गई। नई रिसर्च तो जहां-तहां, इस्लामी समकालीन लेखकों द्वारा इस्लामी किताबों में लिखे गए हिंदुओं पर अत्याचारों को भी पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं किया गया। क्योंकि उस वक्त मुस्लिम नेतृत्व जिन लोगों के हाथ में था वह स्वयं को तुर्की और अरबी ही मानते थे। उन्होंने हिंदुओं को गंगा जमुनी तहजीब के नाम से भरमाया और मुसलमान को यह भरोसा दिला दिया कि आप अरबी और तुर्की ही हो! असल में तो इस्लामियों के सबसे अधिक अत्याचार मुसलमान पर ही हुए हैं लेकिन सिर्फ एक सोच ने कि 'बस मान लो' उन को दिमागी कुंद कर दिया! अपने भाई का सिर काट कर अपने बाप को भेजने वाला औरंगजेब उनका आदर्श है और रामनामी चादर ओढ कर घूमने वाला, वेद उपनिषदों का अनुवाद फारसी में करवाने वाला दारा शिकोह काफ़िर! दिक्कत ये है कि मुसलमान सवाल नहीं पूछता बस मान लेता है। उसे सवाल पूछने वाली व्यवस्था तक रास नहीं आती इसीलिए किसी इस्लामी देश में लोकतंत्र कामयाब नहीं होता। जिस दिन मुसलमान सवाल पूछने लगेगा चीजें अपने आप ठीक होने लगेंगी। क्योंकि -
Without lies Islam dies!
#RSC
दलित कार्ड
वाकई दलित कार्ड हर बार ताश के खेल का हुकुम का इक्का साबित होता है। ये सामने आया नहीं कि बाकी 51 पत्ते ज़मीन पर लंबलेट! चला तो यह गया बी. आर. गवई पर जूता फेंकने के मामले में भी था, लेकिन जिसको इन्होंने हुकुम का इक्का समझ कर पटका मारा था वो तो चिड़ी का गुलाम निकला और हुकुम का इक्का राकेश आनंद के हाथ से मुस्कुराता हुआ बाहर आया। राकेश आनंद की एक ही बात ने कि गवई कहां का दलित वो तो बौद्ध है, असली वाला दलित या SC तो मैं हूं, जैसे वामपंथी-मिशनरी गठबंधन की धोती का धागा ही खींच दिया। इस डर से कि अब दलित> नव बौद्ध> ईसाई रूट का भांडा फूटेगा कि कैसे घाल मेल करके SC में नवबौद्धों को शामिल किया गया, चुप्पी छा गई। जैसे ताश के खेल में हुकुम के इक्के को ब्रह्मास्त्र कहते हैं वैसे ही दलित कार्ड भी अचूक है। किंतु अफसोस है कि हर बार ये विघटनकारियों के हाथ में ही मिलता है जो हर चाल के बाद समाज या राष्ट्र का कुछ हिस्सा जरूर तोड़ता है। इस बार इसका राकेश आनंद के हाथ में मिलना एक सुखद संयोग ही कहिए।
क्या आपको सूनपेड याद है? अजी वही पलवल के पास एक गांव में दो दलित बच्चों को सोए हुए ही जला दिया था। दलित कार्ड चला गया और मासूम बच्चों को जिंदा जलाने के इल्ज़ाम में 11 'ऊंची जाति के दबंग ठाकुर सामंत' जेल चले गए। पुलिस की शुरुआती जांच में ही सामने आ गया था कि केरोसिन बाहर से नहीं फेंका गया बल्कि घर के अंदर से ही कुछ हुआ है। किंतु फिर से 51 पत्ते हुकुम के इक्के के सामने पस्त हो गए। निर्दोष मनुवादी पड़ोसी गिरफ्तार हुए, रोला हुआ और अंत में जांच सीबीआई के पास आ गई। जाँच में सीबीआई ने 11 के 11 आरोपियों को निर्दोष पाया विशेष सीबीआई अदालत ने उन्हें दोष मुक्त भी कर दिया। फौजदारी मुकदमे पूरे के पूरे परिवारों को बर्बाद कर देते हैं! इन आरोपियों के परिवारों पर क्या बीती होगी यह तो वही जाने, किंतु फिर उन दो मासूम बच्चों की मौत का जिम्मेवार कौन था? दलिल कार्ड के नीचे असल अपराधी छिप गया। हो सकता है कि वो परिवार का सदस्य या उन बच्चों का पिता ही हो। जो भी हो एक अपराधी उसी समाज के बीच खुला घूम रहा होगा जिसकी रक्षा के लिए दलित कार्ड बना था। ये दलित समाज के लिए अच्छा हुआ या बुरा? उस समय हरियाणा में बीजेपी सरकार बने कुछ ही समय हुआ था जो दलित कार्ड के सामने घुटनों पर आ गई थी।
पिछले सप्ताह हरियाणा के ही पुलिस अधिकारी वाई पूर्ण कुमार ने आत्महत्या कर ली उन्होंने अपने सुसाइड नोट में जातीय प्रताड़ना के आरोप लगाए हैं। राज्य में इस बार भी भाजपा सरकार है। राज्य कोई भी हो पर भाजपा सरकार दलित कार्ड से कायरता की हद तक भयभीत रहती है। आनन फानन में आला अधिकारियों पर गाज गिरी, डीजीपी तक को जबरन छुट्टी पर भेज दिया गया। इससे पहले मृत आईपीएस अधिकारी के गनमैन को एक शराब कारोबारी से रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। गनमैन का कहना है कि वह वाई पूर्ण कुमार के कहने पर ही यह राशि मांग रहा था। जजों, आईएएस तथा आईपीएस अधिकारियों का बे हिसाब संपत्ति अर्जित करना अब जग जाहिर है। कहते हैं राज्य के लगभग 70% आईपीएस अधिकारियों के पास 500 करोड़ से ऊपर की संपत्ति है। बड़े बड़े अधिकारी शराब के कारोबार में हिस्सा डालते हैं, इनके होटल रिसोर्ट और शराब के अहाते चलते हैं, सरकारी ठेकों में इनका हिस्सा रहता है और ईमानदार सरकार इनके सामने उकड़ू बैठी नजर आती है। यह भी हो सकता है कि इस सारे मामले में रिश्वत और मंथली का मामला भी कहीं ना कहीं शामिल हो। लेकिन अफसोस अब हुकुम के इक्के के नीचे सब दब जाएगा।
राकेश चौहान
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