बस यही फर्क है इस्लाम में और सनातन धर्म में। इस्लाम आपको कहता है कि आंख बंद करके मान लो और सनातन धर्म कहता है कि नहीं प्रमाण मांगो, शंका उठाओ, बहस करो। कुरान कहती है कि ये है खुदा का आखिरी कलाम और उसके बाद ढक्कन बंद! किंतु गीता कहती है कि युद्ध भूमि में खड़े होकर भी आपको स्वयं भगवान से अपनी शंका का समाधान करने का हक है! प्रश्न पूछ रे अर्जुन! नास्तिक दर्शन- आस्तिक दर्शन, वाम मार्ग-दक्षिण मार्ग, नानक पंथी, दादू पंथी, कबीर पंथी, सतनामी, पौराणिक, आर्यसमाजी ... कितनी धाराएं! कितना ज्ञान! कितने प्रश्न! कितने समाधान! कोई किसी के खून का प्यासा नहीं! कोई किसी को काफिर कह के नहीं मार रहा। मुसलमान की पढ़ाई भी कुरान की तर्ज पर हो रही है। कोई सवाल नहीं कोई भी विवेचना नहीं, बस मान लो! किंतु कम से कम भारत में तो इसका कारण शिक्षा व्यवस्था ही है कि सच्चाई जानबूझकर दबा दी गई। नई रिसर्च तो जहां-तहां, इस्लामी समकालीन लेखकों द्वारा इस्लामी किताबों में लिखे गए हिंदुओं पर अत्याचारों को भी पाठ्यक्रमों में शामिल नहीं किया गया। क्योंकि उस वक्त मुस्लिम नेतृत्व जिन लोगों के हाथ में था वह स्वयं को तुर्की और अरबी ही मानते थे। उन्होंने हिंदुओं को गंगा जमुनी तहजीब के नाम से भरमाया और मुसलमान को यह भरोसा दिला दिया कि आप अरबी और तुर्की ही हो! असल में तो इस्लामियों के सबसे अधिक अत्याचार मुसलमान पर ही हुए हैं लेकिन सिर्फ एक सोच ने कि 'बस मान लो' उन को दिमागी कुंद कर दिया! अपने भाई का सिर काट कर अपने बाप को भेजने वाला औरंगजेब उनका आदर्श है और रामनामी चादर ओढ कर घूमने वाला, वेद उपनिषदों का अनुवाद फारसी में करवाने वाला दारा शिकोह काफ़िर! दिक्कत ये है कि मुसलमान सवाल नहीं पूछता बस मान लेता है। उसे सवाल पूछने वाली व्यवस्था तक रास नहीं आती इसीलिए किसी इस्लामी देश में लोकतंत्र कामयाब नहीं होता। जिस दिन मुसलमान सवाल पूछने लगेगा चीजें अपने आप ठीक होने लगेंगी। क्योंकि -
Without lies Islam dies!
#RSC
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