नारनौल शहर को बर्बाद करने में किस का हाथ है? नगर
परिषद् का, शहरियों का, या फिर प्रशासन का? घंटे भर की बारिश में ही आखिर क्यों
शहर जलमग्न हो जाता है? कारण है प्राकृतिक जलाशयों की समाप्ति. नगर परिषद् की नाक के नीचे पानी भरा रहता है. इस क्षेत्र का
वर्षा का पानी टेलिफोन एक्सचेन्ज के पीछे स्थित तेलिया जोहड़ में जाता था. तेलिया
जोहड़ के सभी जलमार्गों को अवरुद्ध कर के इस जोहड़ का गला दबा दिया गया. आधे जोहड़ को
तो मिट्टी से भर दिया गया और बाकी आधा दूषित पानी से भरा है और वहां जलकुम्भी का
वास है. स्वच्छ जल से भरा रहने वाला यह जोहड़ अनेकों विशाल वृक्षों और प्राणियों का
निवास स्थान था. परन्तु इस खूब सूरत और विशाल तालाब की हत्या कर के इसे एक
राजनैतिक पार्टी द्वारा संचालित ट्रष्ट को सौंप दिया गया. नतीजा है जमाल पुर और
नगर परिषद् के आसपास पानी इकठ्ठा होना. सेन चौक जलभराव का अगला गवाह है. यहाँ भी
एक छोटा सा जोहड़ था और नयी तथा पुरानी सराय का पानी यहाँ आ कर इकठ्ठा होता था. इस
जोहड़ को रोक कर मकान बना दिया गया. नलापुर
और मोहल्ला रावका में पानी खड़ा होने का कारण है छिप्पी जोहड़ को बंद कर के वहां शॉपिंग काम्प्लेक्स खड़ा करना. रेवाड़ी रोड पर बरसाती जल के प्राकृतिक मार्गों को अवरुद्ध
कर के बस स्टैंड के पीछे स्थित जोहड़ के स्थान पर कालोनी बन जाना है. लालची भूमाफिया,
भ्रष्ट नगर परिषद्, बधिर प्रशासन और आँखों पर पट्टी बांधें मूक नगर निवासी इन
जलायाशों के हत्यारे हैं.
असम में एक शहर है तेजपुर. हमारे नारनौल की तरह
ही गौरव शाली अतीत लिए. ब्रहमपुत्र नदी के किनारे बसे तेजपुर की भोगोलिक स्थिति भी
हमारे जैसी ही है. तेजपुर में भी बहुत सारे जलाशय थे पर उन्हें लालच की भेंट नहीं
चढ़ने दिया गया बल्कि वहां के जागरूक शहरियों के प्रयास ने उन का सौन्दर्यीकरण कर
के उन्हें शहर का गौरव बनाया. किनारों पर पार्क, लाईटें, सफाई की व्यवस्था की गयी.
और हम लोगों ने इस का उलट किया. शहर के बीचों बीच बह रही छलक नदी को मार कर उसे
गंदे नाले में बदल दिया और प्राकृतिक जलाशय लालच की भेंट चढ़ गए. हमें अपनी एतिहासिक
और प्राकृतिक विरासत सँभालना सीखने के लिए विदेश जाने की जरूरत नहीं है बल्कि
तेजपुर जैसे अनेकों उदाहरण हमारे देश में ही हैं. आईये थोडा सा समय अपने शहर के
बारे में सोचने को भी दें. अपने शहर को बचाने के लिए लाइक करें https://www.facebook.com/groups/150259955163830/
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