एक तरफ सैंकड़ों एकड़ जमीन और करोड़ के आस पास आमदनी वाली गोपाल गौशाला
के प्रधान के चेहरे पर गौसेवा का प्रताप नहीं बल्कि कन्धों पर बेईमानी, भ्रष्टाचार,
बंदरबांट और भाई भतीजा वाद के इल्जामों का बोझ साथ ही बिना किसी विदेशी महिला की
पादुकाएं उठाये महज जुगाड़ बाजी द्वारा प्रधान पद पर चिपके रहने के आरोप। वहीँ दूसरी
ओर नाम की ही नहीं बल्कि सचमुच में ही अनाथ “अनाथ गौशाला” के नौजवान और जुनूनी
प्रधान के मुखमंडल पर संतोष और कर्म का तेज। ये बात भली भांति तब समझ में आती है
जब आप दोनों जगह जाते हैं और वहां की कार्यप्रणाली देखते हैं।
कल शाम पितृ पक्ष की अमावस्या के पकवानों का सेवन कर के मरणासन्न गाय
को SPCA की एम्बुलेंस में कुछ राहगीरों और साथियों की मदद से पहुंचा कर जब मैं वापस
आ रहा था तो उस गाय के बचने की उम्मीद का दिया बुझने को ही था। वही विचार मन में
लिए मैं सो गया और जब सुबह उठा तो वही गाय दिमाग में कौंधी। गौशाला से जो नंबर मैं
ले कर आया था उसे मैंने फीड करने में गलती कर दी थी। अपनी ई-बाइक ले कर जब मैं
गौशाला पंहुचा तो मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा जब मैंने उस गाय को सिर्फ खड़े ही नहीं
बल्क़ि घुमते और चरते पाया। उस की कल की हालत के हिसाब से ये किसी चमत्कार से कम न
था क्यों कि डाक्टरों की भी राय थी कि ये बचेगी नहीं। ये हुआ कैसे! मेरा कौतुहल
स्वाभाविक था। पता लगा उसी नौजवान प्रधान ने रात भर उस गाय का उपचार किया और इस
लायक बनाया कि मैं ‘चीज’ कहते हुए उस की तस्वीर उतार सकूं।
प्रधान जी तो वहां नहीं मिले पर वहां उपस्थित एक कर्मचारी ने मुझे एक
और गाय से मिलवाया जो सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल मिली थी, उस के बचने की
कोई उम्मीद न थी उसका जबड़ा और टांगे टूट चुकी थीं परन्तु इसी प्रधान ने उस की सेवा
शुश्रूषा कर के उसे नया जीवन प्रदान किया। और आज वह अपने पैरों पर खड़ी थी हालाँकि
उसे पूरी तरह ठीक होने में थोडा और समय लगेगा।
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