poems

Wednesday, 9 October 2013

पुनर्मूषको भव:

 
बचपन में सुनाई जाने वाली हजारों साल पुरानी कहानियां जब तब सार्थक हो उठती हैं। कल ही की बात है। आवारा सांडों से चिंतित एक साथी गोपाल गौशाला गए। वहां से उन्हें जवाब मिला कि सांड पकड़ना नगर परिषद् का काम है। ये भाई साहब नगर परिषद् प्रधान पति के पास गए।(चलिए ये भी अच्छा हुआ कि राष्ट्रपति के बाद किसी दूसरे मर्द पद जा सृजन हुआ है।) प्रधान पति का कहना था कि गौशाला प्रधान सब कुछ लूट कर खा रहा है उस से कहो वो पकडवाएगा। येल्लो जी हम तो अब तक प्रधानपति को ही सब से बड़ा कलाकार समझते रहे पर इन से भी ताकतवर कोई है। कहीं फिर उन से भी बड़ा कलाकार ढूंढना पड़े और अंत में यही हो कि चुनाव की छड़ी घूम जाये और जनता कहे पुनर्मूषको भवः।

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