एक रेल यात्रा में एक ने मेरे एक साथी से वही रोंगटे खड़े करने वाली ताली बजा कर कहा 'ला, दे रे!' साथी बोला 'नहीं है!' वो बोला/बोली 'तेरे पास भी नहीं है मेरे पास भी नहीं है, आजा मेरे साथ।'
देश के अलग अलग स्थानों से कई मित्रों ने नारनौल के शोभापुर निवासी रिटायर्ड आईपीएस आर एस यादव का वायरल इंटरव्यू मेरे पास भेजा है जिस में वे कह रहे हैं कि अभय चौटाला ने उन्हें पुलिस चौकी में लिटा कर 39 जूते (आन मिलो सजना) मारे। मैं हैरान तो इस बात से हुआ कि ये वीडियो कितना वायरल हो गया, पर हरियाणा का वो जंगल राज भी याद आ गया। हालांकि वो बिहार जैसा नहीं था, किंतु था जंगल राज ही! चौटालाओं ने जो चाहा किया। क्या हुक्मरान और क्या कार्यकर्ता सब ने दोनों हाथों से माल समेटा। अफ़सर को अदना सा कार्यकर्ता ही कह देता था, 'यो काम कर दिए, ना तो अपने गूदड़ बांध लिए!' कोई- कोई 'कमाऊ पूत' तो डीएम (डीसी) तक को कह देता कि 'अजय (चौटाला) भाई साहब ने कहा है कि काम कर देगा वरना टखने तोड़ दूंगा।' कहते हैं नौकरशाही घोड़े की तरह है जो तुरन्त अपने सवार को पहचान जाती है। हरियाणा में आज सामान्य कार्यकर्ता तो क्या बीजेपी के पदाधिकारियों तक को अफसर कुछ नहीं समझते। किसी काम के लिए जाते हैं तो ऐसे जैसे बच्चा प्रिंसिपल ऑफ़िस में जा रहा हो। ये फर्क है इस सरकार में और उस में!
मेरा वार्ड नारनौल का सबसे अधिक डेकोरेटेड वार्ड है। इस एक ही वार्ड में कुल चार पार्षद हैं। तीन- तीन नॉमिनेटेड, सुदर्शन बंसल, पासी वर्मा और संजय वाल्मीकि। चौथे पार्षद महोदय हैं अजय सिंघल जिन्हें हमने बाकायदा वोट के जरिए चुनकर नगर परिषद भेजा है। पांचवीं हैं श्रीमती मंजू बाला जो ग्रीवेंस कमेटी की सदस्य हैं। पहले ग्रीवेंस कमेटी का हिंदी में अर्थ होता था 'कष्ट निवारण समिति' आजकल क्या है मुझे नहीं पता! अनेक कष्टों में एक कष्ट यह है कि पुरानी कचहरी के पास बहुत समय से एक सीवर लीक है जिसका पानी अक्सर दूर तक इकट्ठा हो जाता है। इस मार्ग पर चलते हुए पदयात्रियों को कई परीक्षाओं में से गुजरना पड़ता है जिन में से एक है आते जाते वाहनों से लगने वाले गंदे पानी के छीटों से बचना और दूसरा कीचड़ से बचने के लिए उछल-उछल कर चलना! इसमें तुर्रा यह है कि सीवर की मरम्मत के लिए वहां लगे ट्रांसफार्मर को हटाया जाना है यानी मामला नगर परिषद और बिजली विभाग का है। दोनों सरकारी महकमे हैं लिहाजा दोनों के बीच फाइल - फाइल का खेल पिछले डेढ़ साल से चल रहा है। लगता है ऐसा कोई नेता, मंत्री या अधिकारी नहीं है जो इन दोनों महकमों को इस मामले के निस्तारण के लिए कह सके।
नगर परिषद की जो हालत आज है वह पहले कभी न थी। पार्षदों की तो औकात है ही क्या ऐसा लगता है कि अधिकारी- कर्मचारी चेयरपर्सन की भी नहीं सुनते और अधिकारियों तथा कर्मचारियों की नहीं सुनते HKRN वाले! भ्रष्टाचार की नई सुरसा का नाम है HKRN जो सब कुछ निगलने को मुंह खोल कर खड़ी है। सभी महकमों में इसके माध्यम से लगे कर्मचारी हैं जो भाजपा के किसी न किसी प्रभावशाली नेता की सिफारिश से लगे हैं। ये भी शेर के पट्ठे अपने को उस नेता से कम नहीं समझते! छोटे-मोटे कर्मचारी की तो बात है क्या, किसी भी विभाग का बड़े से बड़ा अधिकारी भी इनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं करता। अधिकतर महकमों में माल वाली जगह पर यह कच्चे कर्मचारी बैठे हैं और ऐसा भी सुनते हैं कि ये लोग माल अपने आका नेता तक पहुंचाते हैं। नगर परिषद में तो एक कर्मचारी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल तक जा आया और वापस आकर उसी कमाई वाली सीट पर बैठ गया।
सरकार ने वैसे तो सीएम विंडो, ग्रीवेंस कमेटी, समाधान शिविर जैसे कई प्लेटफार्म बना रखे हैं पर यहां समाधान होता नहीं और कार्यालयों में कोई करता नहीं! रिमाइंडर डाल लो, उच्च अधिकारी के पास मामला ले जाओ होना कुछ नहीं है। हां सरकार ने कुछ महकमों में फीडबैक तंत्र विकसित किया है तो आपके पास फोन आता रहेगा जिसमें एक महिला पूछेगी कि आप कार्यवाही से संतुष्ट हैं या नहीं! ज़ाहिर है आपका काम नहीं हुआ तो आप नहीं ही कहेंगे। 'कुछ होगा - कुछ होगा' की आस में अगले हफ्ते नया फोन आ जाता है। ये फीडबैक किस अंधेरे कुएं में जाता है, पता नहीं! ऐसे में आर एस यादव का इंटरव्यू देखने के बाद वो सरकार याद आ गई। हालांकि इन महोदय के साथ हुए अमानवीय व्यवहार का मैं स्वाभाविक विरोधी हूं। असल में जो इक़बाल सरकार का होना चाहिए वो इस सरकार का नहीं है। अधिकारी ही शासन प्रशासन चला रहे हैं और लोकतंत्र में जो होना चाहिए वो न जनता के पास और सरकार के पास भी 'नहीं है!'
सादर
राकेश चौहान
#RSC