poems

Wednesday 12 October, 2016

अरविन्द केजरीवाल के नाम खुला पत्र

श्री अरविन्द केजरीवाल,
      मैं दुर्भाग्य से (जिसे मैं लम्बे समय से अपना सौभाग्य समझता रहा) अन्ना आन्दोलन के दौरान आपका सहभागी रहा हूँ। हालाँकि आप के पार्टी गठन के फैसले से सहमत न होने के बावजूद मैं कुछ समय तक आप लोगों से जुड़ा रहा और उस से भी लम्बे समय तक आप का प्रशंसक रहा। मैं नारनौल के ऐतिहासिक आज़ाद चौक में आपकी (AAP की नहीं) सभा करवाने वाले अग्रणी स्वयंसेवकों में शामिल रहा और इस रैली का मंच सञ्चालन भी किया। आपके कारनामों से आपके प्रति प्रशंसा पहले निराशा फिर तरस और अंततः खीज में बदल गयी। किन्तु आज भी मैं ट्विटर पर आपको फ़ॉलो करता हूँ। उसका कारण आप जैसा बनने की चाह तो बिलकुल ही नहीं है हाँ आपका स्तर जांचते रहना अवश्य ही है। आज ही आपने ट्वीट किया है-
      ‘SALUTATIONS ON IMAM HUSAAIN
            The Greatest Martyr of Mankind
अंग्रेजी भाषा के मेरे ज्ञानानुसार इस का अर्थ हुआ-
     ‘मानवता के महानतम शहीद इमाम हुसैन को अनेकों सलाम’
 क्षमा चाहूँगा इस पत्र के द्वारा मेरा मकसद इमाम हुसैन की शहादत पर सवाल उठाना या कम करके आंकना नहीं है। जन्म से सनातनी हिन्दू, मैं बिना किसी भेदभाव के मंदिर-मस्जिद-गिरजाघर जाता रहता हूँ और यह तो कुछ नहीं 20 साल सेना के ऐसे माहौल में रहा हूँ, जहाँ हर धर्म स्थल का साँझा आहता होता है तथा धार्मिक भेदभाव का नाम निशान तक नहीं होता। ईश्वर से मेरा सम्बंध नितांत निजी है और मैं कर्मकांडी या नियमित पूजापाठी भी नहीं हूँ। ‘वसुदैव कुटुम्बकम’ पर आधारित मेरा सनातन धर्म मुझे अधिकार एवं स्वतंत्रता देता है कि मैं स्वविवेकानुसार इस प्रकार का जीवनयापन कर सकूँ। बहरहाल मैं आपको भी अब तक मेरे जैसा ही सनातनी हिन्दू समझता रहा और आपको भी मेरे जैसी ही आजादी  का अधिकारी मानता रहा। और यह भी मानता रहा हूँ कि मेरी तरह आपको भी सनातन धर्म हर सम्प्रदाय में मौजूद तत्वों की सराहना करने की स्वतंत्रता प्रदान करता है! किन्तु हक़ीकत में धर्म आपके लिए तुष्टिकरण की राजनीति का विषय ही बन कर रह गया है।
      आपने अपनी आधी से ज्यादा जिंदगी स्वराज का रोना रोने में गुजार दी आज आपसे प्रश्न है कि स्वराज आखिर है क्या? क्या स्वधर्म स्वराज का हिस्सा नहीं? क्या ग्रामदेवता का महत्व ब्रह्मा से भी ज्यादा नहीं? आपने हुसैन साहब को मानवता के इतिहास का सब से बड़ा शहीद कहा, मुझे इस से कोई ऐतराज नहीं होता अगर आप मुस्लिम रहे होते। मुझे तब भी ऐतराज न होता यदि आपने उन्हें इस्लाम के लिए कुर्बान होने वाला सब से  बड़ा शहीद कहा होता। लेकिन आपने उन्हें मानवता का सब से बड़ा शहीद कहा है! आश्चर्य है, आपने स्वराज और स्वधर्म के स्थानीय नायकों के प्रति इतना प्रेम और सम्मान कभी नहीं दिखाया! स्वराज नामक पुस्तक लिखने वाले तथाकथित लेखक से यह प्रश्न तो बनता ही है कि देश के इतिहास की उसे कितने जानकारी है? यदि जानकारी है तो फिर यह ताज़ा-ताज़ा सोच नाटक नहीं है तो क्या है? इमाम साहब ने धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा हेतु लड़ते हुए अपनी जान दे दी। अवश्य ही उन्हें इस बलिदान के लिए याद किया जाता है, किन्तु मानवता के इतिहास की बात विशेषकर आप यदि करते हैं तो आप से प्रश्न होगा कि हुसैन साहब की शहादत का जिक्र करते समय आपने, खासकर आपने, एक सनातनी हिन्दू होते हुए राजा दाहिर की शहादत का जिक्र क्यों नहीं किया जिसने पैगम्बर मोहम्मद (स.) के बच्चों की रक्षा के लिए राज्य और जीवन बलिदान कर दिया? एक भारतीय होते हुए आपका फ़र्ज़ था कि इस बात का जिक्र करते कि किस तरह इमाम हुसैन राजा दाहिर के आमंत्रण पर सिंध में शरण लेने जाते हुए करबला में शहादत को प्राप्त हुए! यह एक तरफ तो सनातन के इस्लाम की रक्षा के योगदान पर प्रकाश डालता और दूसरी तरफ हिन्दू-मुस्लिम को नजदीक लाता, जो आज की सब से बड़ी जरुरत है। आपने इतनी तत्परता और इतना प्रेम गुरु गोबिंद सिंह के अबोध बालकों के प्रति कभी नहीं दिखाया जिन्होंने अपना धर्म त्यागने की बजाय जिन्दा दीवार में चुना जाना स्वीकार किया। क्या आपको उनकी शहादत की तिथि याद है? आपने बंदा सिंह बहादुर का जिक्र नहीं किया जिन्हें तरह तरह की यातनाएं दी गयी और उनके पुत्र की हत्या कर के उसका कलेजा निकाल, उनके मुहँ में ठूँसा  गया! क्या आपको उनकी शहादत की तिथि याद है? आपने शिवाजी के पुत्र संभाजी का कभी नाम नहीं लिया जिन्हें धर्म बदलने का लालच दिया गया और इंकार करने पर उनके शरीर से चमड़ी नोच-नोच कर यातनाएं देते हुए उनकी हत्या कर दी गयी! क्या आपको उनकी शहादत की तिथि याद है? आप उन वीरों के प्रति क्या बोले जिन्होंने स्वधर्म, स्वराज और स्वतंत्रता के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी और उन वीरांगनाओं के प्रति जिन्होंने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर कर लिया? ऐसे अनगिनित गुमनाम शहीद जिन्होंने अपने धर्म की रक्षा हेतु अपनी जान दे दी! वो बहादुर सिन्धी और पंजाबी जो बंटवारे के समय अपना सब कुछ छोड़ कर सिर्फ धर्म अपने सर पर रख कर अपने ही देश में शरणार्थियों का जीवन जीने पर मजबूर हुए! वो कश्मीरी पंडित जो अपना सब छोड़ कर अपनी ही जमीन पर विस्थापितों का जीवन गुजार रहे हैं! इन सब में और हुसैन साहब में एक बात सांझी है और वो है स्वराज और स्वधर्म के प्रति उनका प्रेम! आपके मुख से कभी उनके लिए शब्द प्रकट नहीं हुए! आप की नवीनतम ट्वीट के प्रकाश में मैं जानना चाहता हूँ की इन सब का त्याग आपकी नज़र में किस प्रकार कम है? हुसैन साहब को शहादत किस ने दी? हिन्दुओं ने? ईसाईयों ने? या फिर यहूदियों ने? नहीं न? उन्हें मुसलमानों ने ही शहीद किया! मैं तो यह कल्पना भी नहीं कर पा रहा कि आपकी प्रतिक्रिया क्या होती यदि उनकी शहादत के लिए कोई हिन्दू जिम्मेदार हुआ होता! हुसैन साहब ने स्वराज और स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन अर्पण कर दिया, स्वराज के प्रति जो स्वाभिमान उन में था, स्पष्ट है कि आपमें बिलकुल नहीं है और आपका यह नवीनतम नाटक पाखंड के सिवा कुछ नहीं! आपके इस पाखंड से स्वराज, स्वधर्म और स्वाभिमान के लिए कुर्बान होने वाले हुसैन साहब की ही रूह सबसे अधिक आहत होगी! साथ ही इस पाखंड में बहकने वाले मूर्ख ही कही जायेंगे!

जयहिंद