poems

Saturday 9 March, 2019

सर्जिकल स्ट्राइक-2

हां! भाजपा सेना के आतंकी ठिकाने पर आक्रमण का राजनीतिक फायदा उठा रही है! उठाएगी भी! राजनीतिक पार्टी जो है!   पर बात यहीं खत्म नहीं हो जाती इसका फायदा कांग्रेस गैंग भी उठा रहा है। वे भी राजनीतिक लोग हैं, उठाएंगे! एक ये साबित करने में लगा है जैसे कि उसके नेता विमान उड़ा रहे थे तो दूसरा आक्रमण को दिल्ली-जयपुर की हवाई उड़ान सिद्ध करने पर आमादा है। यह ठीक वैसे ही है जैसे कुछ पार्टियां हिंदुओं की बात करके सांप्रदायिक हो जाती हैं और बाकी सब मुसलमानों की बात करके सेकुलर! जबकि इन दोनों में कोई फर्क नहीं है, एक उस किनारे पर बैठी है तो दूसरी इस किनारे पर। लेकिन बात इतनी सी नहीं है, सबसे रोचक तो यह है कि भाजपा अपने आप को सांप्रदायिक होने के दामन से नहीं बचा पाती जबकि दूसरे साफ बच निकलते हैं। निश्चित ही कुछ ताकतें  एक तय एजेंडे के तहत काम कर रही हैं। तभी तो आसिफा की आवाज 2 घंटे के अंदर यूएन में पहुंच जाती है और चंदन का क्रंदन कहीं घुट कर दम तोड़ देता है। आसिफा में भाजपा घिरी मिलती है और चंदन में गूंगी। एक दिन मधु किश्वर को सुन रहा था। 2010 के आसपास की बात थी, तब जब खाप पंचायतों को बदनाम करने की साजिश पूरे विश्व में चल रही थी। मामला था ऑनर किलिंग का! क्या देश और क्या विदेश सब ऑनर किलिंग के अपराध में खाप पंचायतों को फांसी देने     को आतुर थे। देेेश का सर्वोच्च न्यायालय मामले की सुनवाई को लगा था। किंतु पंचायतों के  पक्ष में कोई ढंग का वकील तक नहीं मिल रहा था। जब जमीन पर तहकीकात की गई तो पता लगा कि ऑनर किलिंग के सिर्फ तीन परसेंट मामलों में  गोत्र विवाद था,  जिसके लिए  खाप पंचायतों को बदनाम किया जाता है  और किसी भी खाप पंचायत के खिलाफ  एक भी एफ आई आर नहीं थी। असल में खाप पंचायतें हजारों साल पुरानी  लोक  संस्थाएं हैं  जो  कालांतर से हर प्रकार के सामाजिक विवादों का समाधान करती रही हैं। फिर आखिर खाप पंचायतों को बदनाम कौन कर रहा था! जब इस बात की तहकीकात की गई तो पता लगा   कि जो   संस्था मुद्दा  उठा रही थी उसे एक एवेंजलिकन संस्था  पैसा मुहैया करवा रही थी। क्योंकि चर्च का आजकल पूरा जोर उत्तरी भारत में धर्मांतरण पर है और खाप पंचायतें इस धर्मांतरण में सबसे बड़ा रोड़ा हैं। अन्य दलों की तो बात ही क्या भाजपा ने भी इस मुद्दे पर हाथ खड़े कर दिए! उसके नेताओं का कहना था कि आप चाहते हैं कि हम राजनीतिक आत्महत्या कर लें।   हां तो बात थी वायु सेना द्वारा पाकिस्तान में घुसकर कार्यवाही का राजनीतिक लाभ लेने की।  किसी भी लड़ाई को ना शस्त्र लड़ते हैं और ना सैनिक, बल्कि मनोबल लड़ता है। भाषाई गिद्धों से नोचे जाने के खतरे के बीच कहना चाहूंगा कि युद्ध तो उन्माद में ही लड़ा जा सकता है! "बारह बरस लौ कूकर जीवै, अरु सोरह लौ जियै सियार। बरस अठारह क्षत्री जीवै, आगे जीवै को धिक्कार॥" गाकर कितने ही वीर मातृभूमि पर  न्योछावर हो गए! अगर सेना का कार्य देश की रक्षा करने का है तो नागरिकों का कार्य सेना का मनोबल ऊंचा रखने का है और यह मनोबल तभी ऊंचा रह सकता है जब देश  सेना पर भरोसा बनाए  रखे। बालाकोट  में कितने  आतंकवादी मारे गए यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि यह सन्देश जाना कि अगर पाकिस्तान अपनी आदतों में सुधार नहीं करता तो भारतीय सेना उसे घर में घुस कर मारेगी। ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब हमारी लीडरशिप पाकिस्तान में घुसने से परहेज करती रही। याद कीजिए कारगिल युद्ध! खास हिदायत थी कि किसी भी हालत में सीमा पार नहीं करनी है। सरकार उस वक्त भी बीजेपी की ही थी लेकिन सीमा पार ना करने की सावधानी की कीमत हमारी सेना ने अपने सैकड़ों जवान खोकर चुकाई।  narrative का यह बदलाव अवश्य ही महत्वपूर्ण है और इसका श्रेय मोदी को दिया ही जाना चाहिए। क्या सिर्फ इस बात से ही इस हमले से बचना चाहिए था कि चुनाव आ रहे हैं?  लोकतंत्र में सेना लोकतांत्रिक  तरीके से चुनी गई सरकार के आदेश के बिना कैसे युद्ध कर सकती है? जब देश जख्मी हो, शोक में डूबा हो, जनता का धैर्य टूट रहा हो तो क्या सरकार इस बात का ध्यान रखे कि चुनाव नजदीक आ रहे हैं? इस तरह का हमला दशकों से लंबित था, आज अगर हुआ है तो कुछ लोग नुक्ताचीनी में लगे हैं!  जरा ध्यान से देखिए यह वही लोग हैं जो आतंकवादियों के मारे जाने पर रोते हैं, जो अफजल हम शर्मिंदा हैं के नारे लगाते हैं, जो ओसामा को ओसामा जी बुलाते हैं, जिनके लिए भगवान राम काल्पनिक पात्र हैं! मैं आज भी किसी पार्टी से बंधा हुआ नहीं हूं और कांग्रेस समेत तमाम दलों को मैंने अलग-अलग समय में अपना वोट दिया है। अपनी आंखों के सामने भाजपा के अनेक नेताओं को खनन माफिया के साथ  साझेदारी करके धरती माता की कोख उजाड़ होते देखरहा हूं, उनकी गैंगस्टरों के साथ  बातचीत की रिकॉर्डिंग सुन रहा हूं, जहां  तक उनका बस चले  वो धन भी इकट्ठा करने में लगे हैं! लेकिन जब आप  भाजपा विरोध में अंधे होकर देश विरोधी हो जाते हैं तो मैं स्वयं को आपके विरुद्ध भाजपा के खेमे में ही खड़ा पाता हूं।  क्योंकि इस देश  का बचना जरूरी है, चीन हमें 26 टुकड़ों में  तोड़ना चाहता है पाकिस्तान  ने भारत माता को हजारों जख्म दे ही रखें हैं।  घर के इन चोरों और नालायकों को तो हम ठोक पीटकर ठीक कर लेंगे! सोचा है कि तब क्या होता जब एयर स्ट्राइक के लिए गए विमानों में से कोई भी पाकिस्तान द्वारा गिरा दिया गया होता? जो भाजपा ऐसे अभियान का, जिसको कि पूरे देश का समर्थन है, बचाव नहीं कर पा रही वह मोदी का बचाव कर सकती थी? प्रधानमंत्री ने बहुत साहसिक कदम उठाया है  अगर उनके साथ नहीं खड़े रह सकते तो कम से कम सेना के साथ ही खड़े रहो। चुनाव तो हर 5 वर्ष में होते हैं। चलता घोड़ा अपने आप दाना पानी मांग लेगा, पर अवश्य ही भीरुता की हद तक सहनशील बने एक राष्ट्र को मोदी ने नया आत्मविश्वास दिया है।  जहां तक बात है भाजपा की, तो दूसरे के शूटिंग एरिया में घुस कर स्वयं के पोस्ट में गोल दागने में माहिर यह नपुंसक पार्टी न तो ठीक से अपने हिंदुत्ववादी या राष्ट्रवादी होने का खम ठोक सकती है और ना ही अपने आप को सेकुलर सिद्ध कर सकती है। वामी, कांग्रेसी एवं तथाकथित लिबरलों द्वारा तय एजेंडे का  मुकाबला करने की तो बात ही छोड़ दीजिए। देखना यह है कि क्या मोदी जी अपनी पार्टी का शीघ्रपतन दूर कर पाएंगे! हां इस बीच अच्छे-अच्छों के बदन से कपड़े छिलकों की तरह गिर रहे हैं और देखलो इनमें किसी का खतना नहीं हुआ है।

जय हिंद!

राकेश चौहान