poems

Thursday 23 March, 2023

राम!

 अब से तेरह होली पहले मेरे गांव की होली पर मैंने एक ब्लॉग पोस्ट लिखा था आप इस लिंक पर जाकर वह पढ़ सकते हैं। http://navparivartan.blogspot.com/2010/03/holi-tradition-and-fun.html?m=0

इस होली पर भी सदा की भांति गांव की अन्य दो टोलियां, धमाल गाती, हमारी तरफ के छोर पर पहुंच रही हैं और हमारी टोली उनकी अगुवाई को आगे बढ़ रही है। हवा में उड़ता अबीर - गुलाल! सबके चेहरे, बाल, पैर, वस्त्र रंगों में खिले! लाल, गुलाबी, हरा, नीला, संतरी, केसरिया, पीला.... गुलाल कितने रंगों में आने लगा है! ढप की थाप पर धमाल गाते रंग- रंगीले चेहरे! आंखे बंद, भाव विभोर! अदभुत! गीत गाती टोलियां आपस में समा गईं, हवा में और अबीर उड़ा, सब गले मिले! मिलन की बेला में राम-भरत मिलन से बड़ा भारतीय संस्कृति में क्या हो सकता है भला! तीनों टोलियां बारी - बारी से गा रहीं हैं -
'उठ मिल ले भरत भैया हरि आए, उठ मिल ले।'
प्रसंग वनवास की समाप्ति के बाद राम के अयोध्या लौटने का है और शत्रुघ्न भरत को राम के आगमन की सूचना दे रहे हैं। गीत के बोल पर प्रकाश डालिए शत्रुघ्न कह रहे हैं कि भरत उठो भगवान आए हैं। वे भरत को भैया पुकारते हैं किंतु राम को हरि कहते हैं। ये सोच कर रोमांच हो उठता है कि जनमानस में राम जितने महान हैं उतने ही सुलभ! कोई मिला तो 'रामराम', कोई थका तो 'राम निकल गया', कोई दुष्ट है तो 'उसका तो राम मर गया', अच्छा-बुरा हो तो 'राम देख रहा है ' कोई मर गया तो 'राम नाम सत्य!' बर्बर इस्लामी हमलों के बीच अगर देश की आत्मा को कोई बचा पाया तो वे थे राम। जिस दौर में मंदिर तोड़े जा रहे थे, मूर्तियां खंडित की जा रही थीं उस दौर में तुलसीदास जी ने राम के गिर्द राम चरित मानस रची। उन्होंने भांप लिया कि अंधेरे से यदि सनातन धर्म को कोई उबार सकता है तो वे राम ही हैं। कदाचित जनमानस में राम के प्रति अनुराग को पहचान कर अपने ग्रंथ का नाम रामचरित 'मानस' रखा और 'जा की रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी' कह कर उन्होंने इसे और स्पष्ट कर दिया।  संभवतया कुमार विश्वास का 'अपने अपने राम' कार्यक्रम भी इसी भावना से प्रेरित है। बहुत से विद्वान कुमार विश्वास को कवि के स्थान पर सिर्फ एक मंच संचालक मानते हैं लेकिन उनका यह कार्यक्रम 'अपने-अपने राम' सचमुच अद्भुत है। कुमार अपने श्रोताओं के साथ राम में समाते चले जाते हैं और सारा वातावरण राममय हो जाता है। उधर स्वामी प्रसाद मौर्य के राम ही नहीं बल्कि तुलसीदास भी अपने हैं। वे चाहते हैं कि सारा साहित्य मिटा कर उनके हिसाब से लिख दिया जाए। स्वामी प्रसाद के चार चेले सवा सौ रुपए की रामचरित मानस की प्रतियां जला कर खुश हो रहे हैं और वहीं कुछ दूरी पर सड़कों के किनारे खड़े लाखों लोग नेपाल से अयोध्या जाती उन भाग्यशाली शिलाओं को निहार रहे हैं जो राम बनेंगी। इधर मेरे गांव में धमाल की टोलियां भावविभोर होकर रामगुण गा रही हैं!  राम का नाम जितना सहज-सुलभ है राम बनना उतना ही कठिन कि पत्थर से अहिल्या बनने में तो एक युग लगा होगा किंतु पत्थर से राम बनने के लिए साढ़े छह करोड़ साल इंतज़ार करना पड़ता है। #RSC
राकेश चौहान