poems

Friday 6 May, 2011

रंग बिरंगा मेरा देश

         हिंदुस्तान ! कितना रंगीन! कितना अनोखा! कितना मजेदार!अगर ज्यादा रंग देखने हैं तो आ जाईये गुजरात में हर पब्लिक बिल्डिंग की सीढियां, उन के कोने, सड़क के किनारे, रंगे हुए हैं रंगों में और पेंटर आप को घूमते फिरते मिल जायेंगे! न जाने कब कौन भला सा सज्जन सामने से मुंह फुलाए आ रहा हो और आप के पैरों के पास पुच्च से पिचकारी मार दे! ताज़ा-ताज़ा घटना है अपने law journal के promotion के दौरान मैंने एक वकील सज्जन से कहा कि हमारा journal गुजराती अनुवाद के साथ है! बस फिर क्या था उन्होंने ने गुटखे से भरा जो अपना मुह खोला तो पीक बहार निकलने से रोकने के प्रयास में उन के मुँह का सारा भूगोल नज़र आ गया! गुटखे की मार से उन के दांत ऐसे हो गए थे जैसे किसी ने कीलें गाढ़ दी हों ! काली-लाल-कत्थई उन कीलों के बीच में पान मसाले के छोटे-छोटे टुकड़े तैर रहे थे! बोलना उन के लिए ऊंट को रेल गाड़ी में चढ़ाने के बराबर था पर गुजराती अनुवाद की बात कह के जो मैंने आफत मोल ले ली थी उसे तो मुझे झेलना ही था न! उन्हों ने पूरी दुनिया की नफ़रत अपने चेहरे पर ला कर अपने चेहरे को थोडा और बिगाड़ा! बोले, "मेवे पाफ तीन कवोड़ की लायीबवेवी है! बात कवते हो"  (मेरे पास तीन करोड़ की लाइब्रेरी है! बात करते हो!) इस से पहले कि मैं इस झटके से उबर कर उन्हें कुछ कह पता वो बगल में विराजमान एक महिला वकील की और मुड़े और गुजराती में बोले," मैडम मुझे कह रहा है कि with गुजराती translation!" मोहतरमा ने मेरी और देख कर "हुं" की आवाज़ निकाल कर ऐसे गर्दन एक ओर झटकायी जैसे मैं दुनिया का सब से मूर्ख इन्सान हूँ! बात यहीं ख़तम नहीं हुयी अब ये जनाब तीसरे की तरफ मुड़े और यही बात दोहराई! मैं समझ गया कि ये पेंटर बाबू कोई आम आदमी नहीं हैं और मेरा पाला किसी अंग्रेज के टुकड़े से पड़ा हैं जो कि शायद 1947 में उन की रुखसत के वक्त यहाँ गिर गया! किसी तरह मैंने अपनी जान छुड़ाई और वहां से बच कर निकला! पर उन से तो मैं बच गया, नहीं बच पाया तो दीवार पर बिखरे उस कत्थई रंग से जो कि उन के जैसे महानुभावों ने पान मसाला खा कर बिखेरा था!
          WHO का कहना है कि भारत में तीन चौथाई लोग खुले में शौच करते हैं! हो सकता है कि WHO का कोई प्रतिनिधि सुबह के समय रेलवे लाइन के साथ-साथ उल्लू की आकृति में कतार में बैठे लोगों को देख कर चला गया हो! पर उसे उस आनंद का कोई ज्ञान नहीं जो कि वहां बैठ कर वहां पड़े पत्थरों से खेलने में आता है! न ही उसे इस बात का अंदाजा होगा कि किसी public place में दीवार के किनारे खड़े हो कर सूसू करने में कितना मजा है और मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि खेतों में बैठ कर घास कि मीठी चुभन सहते हुए करने का तो उसे भान तक न होगा! चले आए हम पर उँगली उठाने! अरे हमारे यहाँ अगर कोई टॉयलेट बनता भी है तो वो तब तक साफ़ नहीं होता जब तक कि उस की उम्र पूरी होने पर उसे बुलडोज़र न साफ़ कर दे!
           sanitation के मामले में तो हम उस्ताद हैं! पिछले दिनों एक नयी-नयी ऊँची ईमारत की लिफ्ट में ऊपर जाते समय मेरी नज़र चारों कोनों में लगी देवी देवताओं की तस्वीरों पर पड़ी और मैं वहां रहने वाले लोगों की धर्म परायणता के सामने नतमस्तक हो गया! उसी बिल्डिंग में कोई 15  दिन बाद फिर जाना हुआ तो कमाल! एक भी तस्वीर नहीं! और उन की जगह लगी थी पान मसाले की पिचकारियाँ!! ओह्हो तो भगवन पान मसाले से रक्षा के लिए बिठाये गए थे!!!

सचमुच इस देश को भगवान् चला रहा है!!

2 comments:

  1. hahahaha...............
    please dont hurt that fellow eating tobacco, he is already dead and remaining work will be done by what he was eating.

    dont have words for your description of public place. Should i cry or laugh? cant understand, vo kya hai hum abhi bahut chote hai.

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  2. सटीक observation....specially वो train की पटरी & खेत की घास वाला 😊

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