poems

Tuesday 15 April, 2014

बम्बा तेरी गली में

कुछ सालों पहले एक पत्रिका में एक हास्य व्यंग पढ़ा था आज के मोदी मय वातावरण को देख कर ताज़ा हो उठा। एक कवि सम्मलेन में कवि ने एक नौजवान पर एक कविता लिखी जो कि रोजाना एक हैंडपंप (बम्बा) से घर का पानी भर के लाता था। हैंडपंप जहाँ लगा था वहीं एक खूबसूरत बाला का घर था और वो उस नौजवान को वहां रोजाना आता देख उस की मजबूरी को उस की आशिकी समझ बैठी। नाजनीन के नाज नखरों से नौजवान को उस की गलतफहमी का आभास हुआ और नौजवान के स्पष्टीकरण को कवि ने कुछ यों प्रस्तुत किया-
हमें नहीं तेरी दरकार, हम आते हैं यहाँ,
क्योंकि, बम्बा तेरी गली में।
तू हसीं होगी, नाजनीन होगी, लाखों मरते होंगे तेरी अदा पर, हमें क्या?
हम आते हैं यहाँ,
क्योंकि, बम्बा तेरी गली में।
न घूर हमें इन आँखों से, न दिखा वो टूटी चप्पल,
हम नहीं आते तेरे लिए, हम आते हैं यहाँ,
क्योंकि, बम्बा तेरी गली ।
न बुला अपने खूंसट बाप को, न पुकार तू लंगड़े भाई को,
हम नहीं डरते उनसे, हम आते हैं यहाँ,
क्योंकि बम्बा तेरी गली।
‘बम्बा तेरी गली में’ श्रोताओं को इतना पसंद आया कि उन्होंने उसे अपना तकिया कलाम बना लिया।
एक कवि ने कुछ ऊलजलूल कविता पढनी शुरू की
“आसमान का बिछौना बना लूं और धरती की चादर .......” श्रोता उस बेतुके से इतने नाराज हुए कि ‘बम्बा तेरी गली में बम्बा, तेरी गली में’ से पूरा पंडाल गूँज उठा और उस कवि को बैठना ही पड़ा।

‘मोदी सरकार’ का नारा भी आज ‘बम्बा तेरी गली में’ बन गया है। हर चीज में मोदी सरकार! एक दिलजले ने तो कुछ यूँ लिखा “सनी लिओनी को कपडे पहनाने वालो, जनता माफ़ नहीं करेगी.. अब की बार मोदी सरकार।” कुछ मोदी विरोधी कडवाहट भरे फिकरे भी बना रहे हैं। मेरी मोदी समर्थकों और विरोधियों से प्रार्थना है कि कडवाहट भूल जाएँ और मिल कर बोलें .... बम्बा तेरी गली में। 

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