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Thursday 2 October, 2014

पत्रकारिता

     एक अन्तराष्ट्रीय समाचार एजेंसी के प्रमुख से जब उन के काम करने का तरीका पूछा गया तो उन्होंने कुछ ऐसा कहा, “यदि किसी देश में सरकार गिर रही है तो हम उसे न तो गिराने में मदद करते हैं और न ही बचाने में।” अर्थात ये पत्रकारिता का धर्म है जो हुआ वो दिखाए न कि उस के होने या न होने में मदद करे। दो दिन से शोर मचा है कि राजदीप सरदेसाई को पड़ी। परन्तु पूरा विडियो देखने के बाद लगता है कि यह देसाई तो बिना सर का है! भीड़ में उस व्यक्ति का ये बर्ताव जिसे अति सहनशील होना चाहिए! ये तो खैर मनाईये श्रीमान् कि आप अमेरिका में थे वरना उत्तर भारत में कहीं रहे होते तो पब्लिक मार-मार कर आप का भूत बना देती। इतने सीनियर पत्रकार का ये व्यवहार! इतना ही नहीं सोशल मीडिया और टेलीविजन पर शोर मच गया कि राजदीप को पड़ गयी। ऐसा माहौल बना रहा जैसे कि कौवों की मय्यत हो रही हो। ऐसे में कुछ कौवों के साथ आम आदमी पार्टी के रूप में सरदेसाई को एक स्वाभाविक मित्र मिल गया जिसका एक सूत्रीय कार्यक्रम आजकल मोदी विरोध ही रह गया है (हालाँकि ‘स्वच्छ भारत अभियान’ में शामिल होना एक अच्छा फैसला है)। बहरहाल बिना सर के देसाई से किसी प्रकार की सह्नाभूति न रखते हुए वहां उपस्थित जनता की सराहना की जानी चाहिए जिस ने बड़े संयम से काम लिया।  
    मुश्किल से सप्ताह भर पहले गुजरात के आणंद शहर में एक पत्रकार महोदय से मुलाकात हुई जो एक नामी अख़बार में काम करने के बाद आजकल स्वयं का समाचार पत्र निकाल रहे हैं। ये जान कर कि मैं भी प्रेस से जुड़ा हूँ वो सज्जन कुछ खुलने लगे। मैंने उनसे समाचार पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन में आने वाली दिक्कतों की चर्चा की। उन के वचन थे कि वो 2004 में 300 रुपये ले कर आणंद आए थे और आज उन के पास शहर के पॉश इलाके में बंगला है, गाड़ी है, बैंक बलेंस है, सब कुछ है (क्षमा करें माँ के बारे में मैंने पूछा नहीं)। मैं सोच में पड़ गया कि महज 10 साल में ही फर्श से अर्श पर? परन्तु उन्होंने मेरे दिमाग का पेट्रोल ज्यादा नहीं जलने दिया, लगे खुलासा करने। ‘सर ख़बरें लगाने में कुछ नहीं है, कमाई तो ख़बरें रुकवाने में हैं।‘ ‘लोग सामने से बोलते हैं ये मत लगाओ, ये लगाओ।‘ येल्लो जी ये है पत्रकारिता। जी जनाब मेरे दिमाग में भी आप ही की तरह कुछ पत्रकारों के गाड़ी और बंगले घूम गए। एक तरफ बिना लालच के ईमानदारी से जो है वो दिखाते पत्रकार, तो दूसरी तरफ पैसे के पीछे भागते पत्रकार, दुकानों-जमीनों में दलाली खाते पत्रकार, चापलूसी करते पत्रकार, लोगों के कुसूर दबाते-उघाड़ते पत्रकार, ब्लैक मेलिंग करते पत्रकार, 500 करोड़ की संपत्तियों के मालिक पत्रकार! ये हैं आज की पत्रकारिता के सफ़ेद और स्याह पहलू! दुखद है कि स्याह पक्ष धीरे-धीरे सफ़ेद पर अपना रंग चढ़ाता चला जा रहा है। ऐसे में नई पीढ़ी के कुछ पत्रकारों की निर्भीकता और स्वाभिमान थोड़ी आस जगाता है वरना नेताओं पर से भरोसा उठा चुकी जनता के लिए पत्रकारों से मुंह मोड़ने में भी ज्यादा समय नहीं है और हैरानी नहीं होगी कि किसी दिन टीवी पर कोई सरदेसाई पिटता नजर आए।  


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