poems

Wednesday, 17 September 2025

रंगा सियार

 मैं दृढ़ता से यह बात कहता आया हूं कि नव बौद्धवाद, ईसाईयत का लांचिंग पैड है। हिंदू से बौद्ध और बौद्ध से ईसाई। इस रूट को ठीक से समझ लीजिए। मुझे इस में भी लेशमात्र संशय नहीं कि नवबौद्धवाद को ईसाई मिशनरियां ही संचालित कर रही हैं। मजेदार तो यह है कि मेरी यह धारणा दिन प्रतिदिन दृढ़ इसलिए होती जा रही है क्योंकि इसको साबित करने के लिए कोई ना कोई आ खड़ा होता है। 

रंगा सियार कहानी शायद बचपन में सब ने सुनी होगी। यह पंचतंत्र में एक ऐसे सियार की कहानी है जो भूख से व्याकुल होकर शहर में पहुँचता है और कुत्तों से बचने के लिए एक धोबी के घर में रखे नील वाले पानी से भरी नांद में कूद जाता है। नीला हो कर वह जंगल लौटता है और दावा करता है कि उसे वन देवी ने राजा बनाकर भेजा है। परंतु, एक दिन जब अन्य सियार 'हुआं-हुआं' करते हैं, तो वह भी अनजाने में वैसा ही कर बैठता है, पहचान उजागर होने पर जानवर उसे मार देते हैं। 

नवबौद्धों के भावी ईसाई होने में अगर आपको शक है तो दोनों की भाषा मिलाइए। ईसाई विश्व में जहां भी जाते हैं, सब से पहले वहां के स्थानीय धर्म को पाप और देवी देवताओं को दुष्ट बताते हैं। यही हाल नवबौद्धों का है। इन्हें अपनी सुंदरता नहीं दिखानी दूसरे में बदसूरती पहले तो गढ़नी है और फिर जोर-शोर से उजागर करनी है। आम हिंदू को ईसाई बनाना आसान नहीं है लेकिन उसे बौद्ध बनाना ज्यादा कठिन नहीं। वह बौद्ध हुआ तो समझ लीजिए ईसाईयत का आधा काम हो गया। इस्लाम का भी सब से बड़ा शिकार बौद्ध ही थे। अफगानिस्तान, आज का पाकिस्तान, सिंध और पूरी गंगा यमुना पट्टी बौद्ध थी! जी वही जो आज मुसलमान है! जो डिगा है वो गया है! अगर आपको ईसाई - नव बौद्ध गठबंधन में संदेह है तो नवबौद्धों की शपथ आपने सुनी-पढ़ी नहीं। अगर अब भी संदेह बाकी है तो देश के मुख्य न्यायाधीश की भाषा सुन लीजिए न, इस में और ईसाई मिशनरियों की भाषा में कोई फर्क नहीं। इस व्यक्ति की टिप्पणी सुनकर मुझे तनिक भी आश्चर्य इसलिए नहीं हुआ क्योंकि नव बौद्धों की इस भाषा का मैं आदी हूं, बस फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार रंगे सियार ने विक्रमादित्य के न्याय सिंहासन पर बैठ कर 'हुआं-हुआं' की है! इन रंगे सियारों की पोल खुलने पर समाज को क्या करना चाहिए? मुझे नहीं पता! 

अजीब इत्तेफाक है ना कि नवबौद्धों का रंग भी नीला ही है!

जै भीम, नमो बुद्धाय!


राकेश चौहान 

#RSC