poems

Friday, 19 September 2025

श्राद्ध

 कहते हैं कि औरंगजेब के व्यवहार से दुःखी होकर शाहजहां ने कहा कि 'तुझ से अच्छे तो काफ़िर ही हैं जो अपने मरों का भी हर साल श्राद्ध करते हैं।' कुछ मुसलमानों से सुनता हूं कि उन से पिछली पीढ़ी तक उनके घरों में श्राद्ध होता रहा है। दीवाली पूजन और पंडित से पूछ कर बच्चे का नामकरण तो मेवात के मेव हाल ही तक करते रहे हैं। बेशक औरंगजेब की समझ से तो काफ़िरों की हत्या और मंदिरों के विध्वंस द्वारा हिंदुस्तान से कुफ्र ख़त्म करना सर्वोत्तम मार्ग था किंतु उसके वामपंथी वारिसों को पता है कि विध्वंस किसका करना है। उन्होंने इस्लाम के जबरन धर्मांतरण, मारकाट और मंदिर तोड़ने से लेकर जजिया, कर माफी, इनाम, नौकरी और सूफीवाद के पूरे पैटर्न को बारीखी से समझा है। उन्होंने गोवा इंक्विजिशन से ले कर चावल के बदले मजहब के ईसाइयत के व्यापार को भी करीब से देखा है। वामपंथियों को भली भांति पता है कि इन मजहबों के हथकंडों को अपने बौद्धिक हथियारों से कैसे 'ब्लैंड' करना है। यह विडम्बना नहीं अपितु होशियारी है कि वामपंथ पश्चिम में जहां ईसाईयत और इस्लाम का विरोधी है वहीं भारत में यह दोनों उसके औजार हैं। ऐसा कोई भी मौका आने पर मैं वामपंथियों की प्रशंसा किए बिना नहीं रहता। प्रशंसा क्या मेरा तो मन करता है कि किसी वामपंथी का सर फोड़ कर उसका भेजा चूम लूं! श्राद्ध पर  सुनिए उनके बोल! 'जिंदे मां-बाप की कदर करते नहीं और मरने के बाद श्राद्ध करते हैं!' जैसे श्राद्ध न हुआ मां-बाप की बेकद्री का फ़रमान हो गया। 'बामन को खीर जिमाने से क्या मेरे पूर्वजों के पेट में चला जाएगा?' अरे बामन तो अकेला ही जीमेगा बाकी तो तेरा कुनबा ही डकारेगा।

      मेरे परदादा की मृत्यु मेरे दादाजी के बचपन में ही हो गई थी। उन्हें अपने पिता का साथ बहुत कम मिला होगा। दादाजी अपने पिता का श्राद्ध सामान्य से बढ़कर करते थे। दादी बहुत स्वादिष्ट खीर बनाती थीं। उन्हीं की देखरेख में एक - डेढ़ मन दूध की खीर दो - तीन बार में बनती और ब्राह्मणों तथा परिवार के साथ- साथ लगभग सारा कुनबा ही जीमने आता। यह दृश्य दादाजी के चेहरे पर अपार संतोष ले आया करता। आज दादी का श्राद्ध है। परसों मां का पहला श्राद्ध था। रसोई से बाहर आती भोजन सुगंध के बीच बरामदे में पिताजी को कुर्सी पर खामोश बैठे देख कर मैंने एक अप्रत्याशित सवाल पूछ लिया। 'जी अम्माजी की याद आ रही है?' (दादी को हम अम्माजी ही बोलते थे) जवाब में पिता जी का गला भर आया और हम दोनों ही भावुक हो गए! कुछ चीज़ें समय पर ही ठीक से समझ आती हैं!

राकेश चौहान
#RSC

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