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Wednesday, 25 September 2013

धर्मान्तरण

साजिद मेरा पुराना साथी है। जितना अच्छा वो क्रिकेट और हॉकी का खिलाडी है उतना बेहतरीन इन्सान भी है। मेरे एक 2010 में लिखे ब्लॉग पर उसे इस बात पर आपत्ति है कि भारत में इस्लाम में धर्मान्तरण जबरदस्ती हुआ। उस का कहना है कि ये ठीक है कि भारत के मुसलमान पहले हिंदू थे पर ये धर्म परिवर्तन कहीं भी जबरदस्ती नहीं हुआ। इस के अलावा उसे ये भी शिकायत है कि बेगम हजरत महल को झांसी की रानी जितना महत्त्व नहीं मिला। उस के अनुसार इतिहास को पूर्वाग्रह से लिखा गया है।
आज वो महान दिन यानि 11 सितम्बर है जिस दिन स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में कहा था कि जिस प्रकार सभी नदियाँ समंदर में समा जाती हैं उसी प्रकार सभी धर्म भी एक ईश्वर में समा जाते हैं। इस में कोई शक नहीं कि सब धर्मों का सार एक ही है और सभी में लगभग एक सी ही बातें बताई जाती हैं। परन्तु इतिहास का सही ज्ञान और विश्लेषण जरूरी है। इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करना या फिर अपनी सुविधानुसार ढालना कालांतर में अनेक विषमताओं का कारण बन सकता है। कुछ ही समय पहले ईरान के पूर्व राष्ट्रपति अहमदीनेजाद के एक मंत्री नेजो कि अहमदीनेजाद के रिश्तेदार भी हैंकहा था कि मेरे लिए इस्लाम से बढ़कर ईरान है क्यों कि ईरान का इतिहास पाँच हजार साल से ज्यादा पुराना है और इस्लाम का उदय हुए महज पंद्रह सौ साल हुए हैं। मेरे प्रिय अनुज साजिद का कहना है कि भारत में करीब हजार साल मुगलों ने राज किया परन्तु सभी लोगों का धर्मान्तरण नहीं हुआ ये इस बात का सबूत है कि धर्म परिवर्तन जबरदस्ती नहीं हुआ। मेरे विचार से ऐसा कहना भारी भूल है। भारत में मुस्लिम शासकों का शासन लगभग छह सौ साल रहा। इस में मुग़लों का हिस्सा लगभग ढाई सौ साल का है (बाकी के सौ साल तो मुग़लों का शासन दिल्ली के आस पास ही रह गया थाभारत में मुस्लिम आक्रान्ताओं का पहला हमला आठवीं शताब्दी में सिंध में हुआ। उस के बाद अनेकों हमले हुए और ये सभी हमले जेहाद यानि धर्मयुद्ध की शक्ल में थे। सैनिकों को वेतन और लूट के अलावा ये भरोसा दिलाया जाता था कि वे जो भी कर रहे हैं धर्म के लिए कर रहे हैं। हालाँकि हमलावरों को धर्म से कुछ खास लेना देना नहीं था परन्तु सैनिकों के उत्साह को बनाये रखने और खलीफ़ा के अनुमोदन के लिए ये आवश्यक था। इसी क्रम में हिन्दू  जैन मंदिरों को बड़े पैमाने पर तोड़ा गया। बौद्ध विहार नष्ट कर दिए गए। इस तोड़ फोड़ को और अधिक 'नैतिक 'धार्मिकरूप देने के लिए उन स्थानों पर मस्जिदें या इबादत खाने खड़े कर दिए गए और प्रारम्भ में तो जो सामान इन इमारतों में प्रयोग किया गया वो भी इन मंदिरों और विहारों से लिया गया। अजमेर में ढाई दिन का झोंपड़ा और क़ुतुब कॉम्प्लेक्स में कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद के अलावा अनेकों स्मारक इस का जीवंत उदहारण हैं। (देखें मेरा ब्लॉग http://navparivartan.blogspot.in/2010/10/major-general-retired-afsar-kareem-has.html) हर ऐसी लूट खसूट और बर्बादी के बाद खलीफा के नाम का कुतबा पढ़ा जाता रहा जो कि लगभग पूरे सल्तनत काल में जारी रहा। ऐसे भय के माहौल में धर्मान्तरण का कार्य भी चलता रहा। भारत में स्थित शिक्षा के प्रमुख केंद्र जैसे तक्षशिला और नालंदा नष्ट कर दिए गए। वहां स्थित साहित्य को आग के हवाले कर दिया गया। नालंदा का पुस्तकालय तो इतना समृद्ध था कि उस में लगी आग कई महीनों तक जलती रही। धर्मान्तरण का भय और ताकत से भी बड़ा हथियार था जजिया। लोगों को धर्मांतरण के लिए बहलाया फुसलाया और धमकाया जाता और जो धार्मंतरण के लिए राजी नहीं होता उस पर जजिया नाम का कर लगा दिया जाता। ये कर सिर्फ गैर मुस्लिमों के लिए था और मुस्लिम बनते ही इस से छूट मिल जाती थी। स्वाभाविक था कि ऐसे में कामगारों की पूरी की पूरी जातियां ही मुसलमान हो गयीं। जिन में जुलाहेतेलीडोमसिकलीगरलोहारसक्केभटियारे आदि थे। हालाँकि कुछ मुस्लिम शासकों ने जजिया कर माफ़ भी किया पर ऐसे उदहारण बहुत कम हैं। औरंगजेब के समय में जबरदस्ती धर्मान्तरण बहुत बड़े पैमाने पर किया गया। यमुना गंगा के दोआब में गाँव के गाँव मुसलमान बना दिए गए। जो भाग गया वो ही अपना धर्म बचा पाया। खुद को धर्मान्तरण से बचाने को गाँव खाली हो जाते और लोग जंगलों में भाग जाते। औरंगजेब का लक्ष्य तो पूरे भारत को इस्लाम की धरती बनाना था। इस को प्राप्त करने के लिए उसने हजारों मंदिर तुडवाए। कहते हैं कि औरंगजेब धर्मांतरित हिन्दुओं के जनेऊ तुलवा कर भोजन करता था। असहिष्णु इतना कि अपने सगे भाई की आँखें निकलवा दी थीं। उस भाई का कुसूर इतना था कि उस ने इस्लाम और हिन्दू को धर्म की दो आँखें कह दिया था। बहरहाल इस तरह से धर्मान्तरित बहुत से लोगों ने शासन का दवाब कम होने के पश्चात अपने मूल धर्म में वापस आने का प्रयास किया। परन्तु हिन्दू धर्म में ऐसा कोई तरीका उस वक्त नहीं था जिसका परिणाम एक नए वर्ग के उदय के रूप में हुआ उस का एक उदाहरण है ‘अधबरिया ठाकुर ये उत्तरप्रदेश में राजपूत समाज का ऐसा वर्ग है जिन्होंने धर्मान्तरण के पश्चात् अपने मूल धर्म में आने का प्रयास किया परन्तु उन के समाज ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया। इसी प्रकार अन्य जातियों में भी ऐसा ही हुआ। 
औरंगजेब के कल में पंजाब में तो धर्मान्तरण का  हाल था कि इस्लाम स्वीकार  करने पर गुरु गोविन्द सिंह के 7 और 9 साल के  पुत्रों को जीवित दीवारों में चुनवा दिया गया इस से पहले उन अबोध बालकों को इस्लाम स्वीकार करने हेतु तरह-तरह के प्रलोभन दिए गए। गुरु गोविन्द सिंह को हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु विशेष सैन्य दल (खालसाबनाना पड़ा।
टीपू सुल्तान ने मालाबार में लगभग चार लाख हिन्दुओं का जबरदस्ती धर्म परिवर्तन किया। बीसवीं सदी में मोपला और नोआखली के दंगों में हजारों हिन्दू जबरदस्ती मुसलमान बना दिए गए। जिस ने भी धर्मंतारण से इंकार किया उसे मौत के घाट उतार दिया गया। अब आती है बात पूरे भारत के मुस्लिम  होने की। इस्लाम की आंधी ने बड़े बड़े वृक्ष उखाड़ दिए। खाड़ी के देशों के अलावा अफ्रीका में प्रचलित धर्मों का जबरदस्ती सफाया कर दिया गया। पारसी और यहूदियों को अपना धर्म बचाने के लिए अपने पुरखों की जमीन छोड़ भागना पड़ा। पारसियों ने तो जब भारत में शरण ली तो उन की संख्या सौ से कुछ ही ऊपर रही होगी। परन्तु भारत का पूरी तरह से इस्लामीकरण  हो सका इस का कारण संभवतः ये रहा कि यहाँ पर धर्म जीवन शैली के रूप में था  कि आचरण के सिद्धांतों (code of conduct) के रूप में। code of conduct पर आधारित बौद्ध संप्रदाय का तो लगभग सफाया ही हो गया और सल्तनत काल तक बड़ी संख्या में बौद्धों का जबरन धर्मान्तरण हुआ। कश्मीर में चौदहवीं शताब्दी तक बौद्ध अधिसंख्य थे परन्तु आने वाली दो शताब्दियों में लद्दाख को छोड़ कर पूरी कश्मीर घाटी में बौद्ध समाप्त हो गए। भारत का इस्लामीकरण  होने का दूसरा कारण रहा भारतीयों का धर्मान्तरण के विरुद्ध खड़ा होना। बहुत से वीरों ने अपने धर्म की रक्षा में प्राण गंवा दिए। वीरांगनाओं ने अपने धर्म और आबरू की रक्षा हेतु जिन्दा ही चिताओं में कूद कर जौहर किया। उन के इस बलिदान से आम आदमी को अपने धर्म की रक्षा की प्रेरणा मिली। अब फिर से आते हैं मुस्लिम शासकों और उन के सर्वशक्तिमान होने की धारणा पर। ये ठीक है कि पृथ्वीराज चौहान के बाद भारत पर केन्द्रीय सत्ता के रूप में हिन्दू धर्म का वर्चस्व समाप्त हो गया था परन्तु छोटे राज्यों के रूप में यह बना रहा। इन राज्यों से निपटना  तो दिल्ली सल्तनत के वश में रहा मुग़लों के और  ही अंग्रेजों के।  ये राज्य आक्रमणकारियों के सामने मजबूत प्रतिरोध प्रस्तुत करते। अपने से संख्या में एक चौथाई राजपूत वीरों से समेल की लडाई के बाद शेरशाह सूरी ने कहा था कि  मुट्ठी भर बाजरे के लिए मैंने हिंदुस्तान की बादशाहत लगभग खो ही दी थी अतः शासकों ने इन से मित्रता करने में ही अपनी भलाई समझी। आजादी के समय लगभग साढ़े पांच सौ छोटी बड़ी देशी रियासतें थीं जिन में महज पाँच-सात प्रतिशत ही मुसलमान शासकों के अधीन थीं। इन रियासतों में बड़े पैमाने पर धर्मान्तरण  होना निश्चित ही समझ में आता है। गंगा-यमुना-ब्रह्मपुत्रसिन्धु और इस की सहायक नदियोंकृष्णा-गोदावरी दोआब में मुस्लिम शासकों का होना और जबरदस्ती धर्मान्तरण भी समझना भी मुश्किल नहीं। इस ब्लॉग काअर्थ ये  लगाया जाये कि धर्मांतरण सिर्फ जबरदस्ती ही हुआ। बल्कि बड़े पैमाने पर लोग अपनी मर्जी से भी मुसलमान हो गए। ऐसे धर्मान्तरण का सब से प्रमुख जरिया रहे सूफी संत। भारत सदा से ही संतों से प्रभावित रहा है। चाहे वो हिन्दू रहे या मुसलमान। आज के दौर में भी अजमेर शरीफ जाने वाले हिन्दुओं की संख्या देख कर ये अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। कश्मीर में तो सूफी संतों का धर्मान्तरण में उल्लेखनीय योगदान रहा। ये कहने की आवश्यकता नहीं कि इन संतों को शासन की तरफ से समर्थन और मदद दोनों मिलते थे। कुरान की कुछ आयतों का हवाला दे कर भी जबरदस्ती धर्मान्तरण होता रहा। जबरदस्ती धर्मान्तरण या फिर दूसरे धर्म के अनुयायिओं पर अत्याचार के दोषी सिर्फ मुस्लिम हमलावर या शासक ही रहे हों ऐसा नहीं है। यह दौर लगभग सभी धर्मों में आया। बौद्ध मत के अनुयायी कई शासकों ने बड़े पैमाने पर अन्य मतों को मानने वालों पर अत्याचार किए। उदाहरण के लिए बौद्ध शासक चंगेज खान ने बड़ी संख्या में मुस्लिमों का क़त्ल किया। हिन्दू राजा पुष्यमित्र शंगु ने बड़ी संख्या में बौद्धों की हत्या की। गोवा में पुर्तगालियों ने स्थानीय निवासियों पर भयंकर अमानवीय अत्याचार किये। और उनका जबरन धर्मान्तरण किया। बड़ी संख्या में मंदिरों को तोडा गया। हिन्दू रीति से विवाह और जनेऊ पहनने पर पाबन्दी लगा दी। यूरोप में ईसाई शासकों ने धर्म के नाम पर नरसंहार किए। अतः जबरन धर्मान्तरण की बात उठने पर किसी मुस्लिम को विचलित होने की जरूरत नहीं है। 
आज के दौर में चिंता का विषय भूतकाल में हुए धर्मान्तरण नहीं है बल्कि भारतीय मुसलमानों का  इस्लामीकरण है। जिस में पूर्वजों के दिए हजारों सालों के संस्कारों को इस्लाम के विरुद्ध बता कर धीरे-धीरे मुसलमानों के जीवन से मिटाया जा रहा है। इतिहास पढ़ाने के समय स्थानीय इतिहास  पढ़ा कर उस की शुरुआत खाड़ी के देशों से शुरू की जा रही है। विदेशी हमलावरों की अगली ही पीढ़ी तो स्वयं को सांस्कृतिक रूप से भारतीय मानने लगी थी। परन्तु दोनों धर्मों को जोड़ने वाले स्थलों पर से सांस्कृतिक चिन्हों को हटा कर इन का भी इस्लामीकरण किया जा रहा है। उदाहरण के रूप में कश्मीर घाटी में प्रचलित सूफी प्रभाव वाले इस्लाम को भी धीरे-धीरे कट्टरवाद में बदला जा रहा है। मुझे ध्यान है कि पीर की एक मजार के प्रवेश द्वार की miniature पेंटिंग में कुछ साल पहले तक स्वास्तिक बना हुआ था और हाल ही में सब कुछ पुतवा कर नई पेंटिंग कर दी गयी और स्वास्तिक मिटवा दिया गया। मजहबी तब्लीकें घूम घूम कर भोले भाले लोगों के जहन में इस्लाम के नाम पर जहर भर रही हैं। उन से बुजुर्गों के संस्कार त्यागने को कहा जा रहा है। हजारों सालों से चले आ रहे रीति रिवाज और संस्कार गैर इस्लामिक बता कर नष्ट किये जा रहे हैं। बाकी  काम राजनीति कर रही है।