आखिर कोमन वेल्थ खेल गिर-पड़ के शुरू हो ही गए! हम हिन्दुस्तानी हर चीज में फायदा ढूँढने की कोशिश करते हैं! खेलों की तैयारी की तो क्या बिसात हमारे देश में तो लोग शहीदों के कफ़न में ही दलाली खा कर डकार गए! लोग डरे बैठे थे कि अब तो दुनिया में हमारी छीछालेदर हो कर ही रहेगी पर लगता है इस देश को सचमुच ही भगवान चला रहे हैं! जो टी वी वाले आयोजकों को चोर कहते नहीं थकते थे और उन्हें सुबह शाम पानी पी-पी कर कोसते थे वही उद्घाटन समारोह को देख कर निहाल हुए जा रहे थे! सचमुच समारोह भव्य था! अद्भुत और खूबसूरत! पर मेरी समझ में थीम सॉन्ग नहीं आया! ए आर रहमान का संगीत ऊँची दुकान फीका पकवान जैसा लगा! अगर बात ए आर रहमान की चल ही निकली है तो 'जय हो' भी मेरी समझ से बाहर था! मुझे कभी-कभी लगता है कि मुझे संगीत की बिलकुल समझ नहीं! पर न जाने क्यों मैं समझता हूँ कि अगर जय हो को ऑस्कार मिल सकता है तो पचास, साठ और सत्तर के दशक के हर गाने को मिलना चाहिए! हमारे देश के संगीत की अपनी पहचान है और जब कलात्मक या कर्ण प्रिय संगीत की बात होती है तो दुनिया हमारी और देखती है! और एक हम हैं की पुरुस्कार जीतने की होड़ में अपने संगीत को भुला कर उस कान फोड़ू शोर को संगीत समझ लेते हैं जिस से परेशान हो कर अनगिनित विदेशी हमारी संस्कृति और संगीत की और खिंचे चले आते हैं! हाँ मैं भी चाहता हूँ कि पूरी दुनिया हमारी प्रतिभा और विरासत का लोहा माने पर उस के लिए हम क्यों अपने माप दंड बदलें! अगर हम पुरुस्कारों की चाह में पश्चिम के पीछे अंधे हो कर दौड़ते रहे तो बेशक कुछ 'जय हो' ऑस्कर जैसे पुरुस्कार जीत जाएँ पर अपने यहाँ होने वाले उन कार्यक्रमों में जिन में हमारी संस्कृति की छाप दिखनी चाहिए 'ओ यारो इंडिया बुला लिया' जैसा बेहूदा संगीत ही पेश कर पाएंगे!