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Wednesday, 10 September 2014

जूतों में दाल


लीजिए साहब आखिर नारनौल विधान सभा की भाजपा की टिकट घोषित हो ही गई। दिमाग में दो कहानियाँ आ रही हैं। पहली तो बिल्लियों की लड़ाई में बन्दर के फायदा उठाने वाली और दूसरी उस माँ वाली जो राजा के इस न्याय पर कि बच्चे के दो टुकड़े कर के दोनों औरतों को दे दो, रोती है और टुकड़े करने से मना करती है व इस की बजाय राजा से बच्चा दूसरी औरत को देने की प्रार्थना करती है। समझ नहीं आ रहा यहाँ कौन सी कहानी लागू होगी पर इतना तय है कि बीजेपी के टिकटार्थियों में उस माँ जैसा संवेदनशील हृदय किसी का नहीं जो बच्चे की जान बचाने के लिए उसे दूसरी औरत को देना मंजूर कर लेती है।

सुबह ही सुबह एक मित्र ने सूचना दी कि बीजेपी की टिकट की घोषणा हो गई। 'किसे मिली?' स्वाभाविक सा सवाल था। उन्होंने नाम बताया। 'ये कौन है?' अगला स्वाभाविक सवाल। पता लगा यादव सभा के प्रधान, तो एक धुंधली सी आकृति उभरी। फिर बारी-बारी से बीजेपी नारनौल के क्षत्रपों के चेहरे आँखों के सामने घूम गए। पर आश्चर्य अगली जो तस्वीरें सामने आई वो इंसानों की नहीं चप्पलों की थी, घिसी, टूटी, पुरानी चप्पलें। काफी दिमाग लगाया तो समझ आया कि ये कार्यकर्ताओं की चप्पलें हैं। बेचारा कार्यकर्त्ता फिर ठगा गया। जिंदगी गुजर गयी दरियाँ उठाते-बिछाते पर रहा वहीं। झंडा उठाएगा, 'की जय' 'की जय' बोलेगा और फिर चुनाव के समय कोई पैराशूट से प्रकट होगा और मज़बूरी में उस के पीछे हो लेगा। ऐसे हो गया जैसे पार्टियाँ मालिक हैं और कार्यकर्त्ता नौकर। कुछ दिन पहले इनेलो की टिकटों में भी यही हुआ जब कार्यकर्ताओं को धता बता कर नाकारा नेताओं की पुत्र वधुएँ और पूंजीपति पसंद किए गए। पर इनेलो तो प्राइवेट लिमिटेड पार्टी है। ऊपर से चाबुक चली और सारे शेर हो लिए सीधे! लगे मंजीरे 'जय चौटाला' 'जय कमलेश'! पर बीजेपी का क्या होगा। यहाँ तो वही एक दूसरे को फूटी आँख नहीं सुहाते जो साल भर सक्रिय रहते हैं! रामबिलास शर्मा की चाबुक से तो कुत्ता भी स्टूल पर नहीं बैठता, शेर तो कहाँ बैठेंगे लगता है यहाँ अमित शाह को चाबुक चलाने खुद आना पड़ेगा। सजातीय उम्मीदवार के सात खून माफ़ करने की मानसिकता रखने वाले इलाके में दो सशक्त सैनी उम्मीदवारों के बीच अहीर उम्मीदवार को टिकट देना अच्छा फैसला हो सकता है पर बीजेपी हाई कमान को इतना तो ध्यान रखना ही चाहिए था कि चुनाव यादव सभा के नहीं विधान सभा के हो रहे हैं। बहरहाल मैं उम्मीद करता हूँ कि बीजेपी के झंडे उठाते बूढ़े हो चले कार्यकर्ताओं को चप्पलों की नयी जोड़ी तो नसीब होगी क्यों कि उन्हें भी पता है की ये दाल तो जूतों में ही बंटेगी।