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Wednesday, 30 March 2011

कल रहूँ न रहूँ सोच लो ना

कल रहूँ न रहूँ सोच लो ना...
          बड़ा ही खूब-सूरत ये गीत बाघ बचाओ अभियान के लिए लॉन्च किया गया है! आज़ादी के समय भारत की जनसँख्या करीब 35 करोड़ थी और आज से एक सदी पहले बाघ एक लाख थे! आज देश में इन्सान हो गए एक अरब पंद्रह करोड़ के आस पास और बाघ रह गए 1706, और हैरानी की बात ये है कि पांच साल पहले बाघों की संख्या घट कर 1411 रह गयी थी! राहत की बात है की इस में कुछ इजाफा हुआ है फिर भी स्थिति चिंताजनक तो है ही!  कुछ लोग बाघों को बचाने में लगे हैं और कुछ बेचने में ! बचाने वालों के प्रयास को बल प्रदान करने के लिए है ये बड़ा अच्छा गीत पर अफ़सोस की बात है कि ये गाना भी बहुत कम लोगों ने सुना है उसी तरह जिस तरह बहुत कम को इस   बात से मतलब है की भारत में बहुत थोड़े से बाघ बचे हैं! और बेचने वालों की तो क्या कहिये! एक बार अरुणाचल प्रदेश में मेरा एक व्यक्ति से मिलना हुआ! मुझे उस से कुछ काम था! मैंने उस के पास किसी अजनबी को देखा! मुझे कुछ शक सा हुआ! उस के जाने के बाद मैंने बात-बात में उस से पूछा तो पता लगा कि श्री मान जी को भालू की खाल चाहिए! यानि वही बेजुबान जानवरों का क़त्ल और उन के शरीर के अंगों का व्यापार!  इस व्यक्ति को इस बात से कोई परहेज नहीं था बल्कि उस ने शरीर पर भालू के हमले से हुए निशानों को दिखाना शुरू किया! जैसे भालू ने उस के गाँव में आ कर उस के घर में घुस कर उसे मारा हो! मैंने उसे काफी समझाया कि किस तरह हर जीव का प्राकृतिक संतुलन के लिए महत्व है! पता नहीं उसे कितना समझ आया और उस ने कितने जानवरों की जान ली या फिर उन्हें छोड़ा मैं उस से दोबारा कभी नहीं मिला!
            वाकई इन्सान धीरे धीरे सब को खा गया! कभी कभी तो मुझे लगता है की पुनर्जन्म के बारे में कही जाने वाली बातें सच होती हैं! अब आप ही देखिये जंगली जानवरों के बारे में! पहले कितने जंगली जानवर थे और मनुष्य काफी कम थे! और अब इंसान ही इंसान और जानवर नदारद! लगता है कि सारे जानवर इंसानों के रूप में पैदा हो गए! तभी तो इंसानों में ही शेर, भेडिये, कुत्ते, बिल्लियाँ, सांप (आस्तीन के), बिच्छू आदि नज़र आते हैं इंसान तो कोई-कोई ही मिलता है!