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Sunday 13 October, 2013

आआपा का स्यापा

आम आदमी पार्टी की चर्चा करने के लिए लोकनायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन से अच्छा मौका क्या हो सकता है। जेपी जी ने सम्पूर्ण क्रांति के लिए पूरे देश को उस समय जगाया जब इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया तो दूर की बात, समाचार पत्रों पर भी पाबन्दी लगा दी गयी थी। सम्पूर्ण क्रांति की अवधारणा ले कर जनता पार्टी सत्ता में आई। परन्तु साल भर में देश को बदलने का दावा करने वाली पार्टी का साल भर में ये हाल हो गया कि देश के साथ-साथ जेपी को भी जनता पार्टी ही सब से बड़ी समस्या नजर आने लगी और फिर इस आन्दोलन से निकले मुलायमों, पासवानों और लालुओं ने आने वाले समय में भ्रष्टाचार का ऐसा कहर बरपाया कि इन्सान तो इन्सान पशुओं तक को नहीं बक्शा।

अन्ना आन्दोलन के रूप में देश के सामने फिर मौका आया। हालात ऐसे बने कि आम आदमी पार्टी के नाम से एक और राजनैतिक दल बन गया और सहमति के बावजूद अंतिम समय में अन्ना जी का विवेक जागा तथा उन्होंने खुद को पार्टी से अलग कर के अपने आप को जेपी बनने से बचा लिया। मेरा सदा ये मानना रहा है कि प्रचलित व्यवस्था चाहे कितनी भी ख़राब हो उसे तब तक चुनौती नहीं देनी चाहिए जब तक उस का स्थान लेने के लिए आप के पास उस से बेहतर व्यवस्था न हो। परन्तु लगता है कि आआपा के जनकों ने इस और ध्यान नहीं दिया और एक इंस्टेंट पार्टी बना कर खडी  कर दी।  भोजन और विवाह तक में इंस्टेंट के आदि हो चुके समाज को इंस्टेंट विकल्प सुझाया गया। परन्तु ये जनक ‘इंस्टेंट’ संस्कृति के साईड इफेक्ट्स को भूल गए। अपने अधिकतर साथियों को गँवा चुकी आआपा से किसी चमत्कार की उम्मीद मुश्किल ही है। हाँ अवश्य ही एक राजनैतिक विकल्प की जरूरत है परन्तु ऐसा लगता है कि इस विकल्प को आकार देने में बहुत जल्दबाजी की गयी है। ऐसी ही एक जल्दबाजी देश की आजादी के समय की गयी थी उस की कीमत देश के टुकड़ों के रूप में चुकानी पड़ी, जिस का दर्द अब भी नहीं गया। जैसे आजादी के समय देश के नेताओं को डर था कि कहीं अंग्रेज देश छोड़ने से इंकार न कर दे, ऐसा लगता है कि उसी तरह आआपा बनाने वाले साथियों को लग रह था  कि कहीं उन के सहयोग के बिना ही भ्रष्टाचार ख़त्म न हो जाये। कहीं ऐसा न हो कि आआपा भी भ्रष्ट राजनेताओं की एक पूरी जमात खड़ी कर दे और उस से निपटने को फिर किसी अन्ना को रामलीला मैदान में अनशन करना पड़े। जिस तरह के समाचार आ रहे हैं ऐसे में बहुत मुमकिन है कि आआपा के जहाज में मौकापरस्त सवार हो कर इसे डूबा दें और ऐसा होना तय है क्योंकि मौकापरस्त हवा का रुख भांप अपने फायदे के लिए मिल कर काम करने में सक्षम होते हैं और ईमानदार अड़ियल और घमंडी बने रह कर समाज का बहुत बड़ा नुकसान कर देते हैं। एक तरफ जनलोकपाल आन्दोलन में इकठ्ठा हुए देशभक्त और ईमानदार लोग आआपा से दूरी बना चुके हैं और वहीँ दूसरी और RTI ब्लेकमेलरों तथा भ्रष्ट लोगों के पार्टी से जुड़ने की ख़बरें आ रही हैं। हालांकि दिल्ली जा कर आआपा में शामिल हुए बिना ही किसी अच्छे उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने पर मैं गंभीरता से विचार कर रहा हूँ परन्तु इस जल्दबाजी ने मेरे जैसे अनेक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ताओं को अब तक आआपा से बाहर रोके रखा है। 

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