poems

Thursday, 20 November 2025

पुरुष दिवस

 मानव की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न मतों के विभिन्न विचार हैं। वेदों की दृष्टि में सृष्टि की उत्पत्ति वातावरण के बदलने से चार प्रकार के जीवन के जन्म से हुई। अंडज (अंडे से उत्पन्न), पिंडज (गर्भ से उत्पन्न), स्वेदज (पसीने से उत्पन्न), और उद्भिज (बीज से उत्पन्न)। अतः मनुष्य पिंडज श्रेणी में आता है। पुराणों के अनुसार आदिमनु और शतरूपा सृष्टि के पहले पुरुष और महिला थे। पुराणों में मानव जाति के आगे बढ़ने के कई वृतांत मिलते हैं। ईसाई मत के अनुसार ईश्वर ने पहले मिट्टी से पुरुष यानि एडम की रचना की और उसका अकेलेपन दूर करने के लिए, उसके मनोरंजन हेतु, मिट्टी से नहीं अपितु उसी की पसली की हड्डी से, महिला अर्थात् ईव को बनाया। ईसाइयों ने इस मत को यहूदियों से नकल किया, जिसे मोहम्मदियों ने एडम को आदम और ईव को हव्वा नाम देकर कुरान में शामिल कर लिया। 

जीव विज्ञानियों के अनुसार पुरुष के जीवन पर गर्भ में उत्पत्ति के साथ ही संकट प्रारंभ हो जाता है। पुरुष भ्रूण के जीवित रहने की दर कन्या भ्रूण से काफी कम है, जो कि उसके जन्म के पश्चात भी, मृत्यु पर्यंत, कम ही बनी रहती है। अर्थात उत्पत्ति से लेकर अंत तक महिला पुरुष से अधिक मजबूत है और पुरुष संकट में है। मानव शास्त्र के अनुसार भी काल क्रम में महिला ने स्वयं को अधिक विकसित किया है जो कि उसके व्यवहार में भी दिखाई देता है। महिला स्थिर एवं तृप्त है जबकि पुरुष अस्थिर और असंतुष्ट। महिला डटकर मुकाबला करती है जबकि पुरुष पलायन वादी है। पुरुष को तो उसके कर्त्तव्य का पालन कराने हेतु भी महिला को अपना सर तक काट कर भेंट करना पड़ता है। पुरुष वह बिगड़ैल बच्चा है जो वर्जनाओं को तोड़ना चाहता है परंपराओं को नष्ट करना चाहता है! नारी को परंपराओं का महत्व पता है, वह संयमित है, उनका पालन एवं संरक्षण करती है! या ये कहें कि उत्पत्ति के क्रम में प्रबंधन में महिला तथा क्रियान्वयन में पुरुष ने अपने आप को विकसित किया है। 

भारतीय मान्यताओं में महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं तथा इब्राहमिक मान्यताओं में उत्पत्ति से ही महिला मनोरंजन का साधन है। जिसे ईश्वर ने सिर्फ इसलिए बनाया था ताकि आदम का मन लगा रहे। आर्थिक सामाजिक रूप से पूरा विश्व इब्राहमिक विचारधारा का गुलाम हो चुका है व सनातन संस्कृतियां या तो समाप्त हो गईं या फिर दम तोड़ रही हैं। आवश्यकतानुरूप इब्राहमिक मान्यता वाले विश्व में ही महिलावाद या महिला विमर्श पैदा हुआ और फैला। सनातन संस्कृतियों में इसकी आवश्यकता इतनी ही थी कि वह इब्राहमिक छाया से निकलकर सनातन विकास के प्रकाश में चली जाएं जहां वे पुरुष और स्त्री के अधिकार एवं कर्तव्य निर्धारित कर चुकी हैं। किन्तु ऐसा हो न सका और महिला पुरुष की 'बराबरी' करने निकल पड़ी। पर क्या ये संभव है? हर घर में एक - दो बच्चे। बेटी से मां घर का काम नहीं करवाएगी क्योंकि उसे तो पुरुष बनाना है न! बेटी तो महिला है घर से बाहर भी नहीं जाएगी तो फिर बेटा बाहर का काम करेगा, पुरुष है न! एकल परिवार, एक बेटा! बेटा यहां जा, बेटा वहां जा। बेटा पढ़ेगा या फिर बाहर भीतर के काम करेगा! बेटा पढ़ेगा तो बाप जाएगा! पुरुष है न! कार्यक्षेत्र में खतरे वाली जगह महिला नहीं जाएगी पुरुष जाएगा। महिला के लिए अलग से छुट्टियां, उसकी की सुरक्षा सुनिश्चित करते अनेकों कानून- कायदे। अब महिला को पुरुष बनाना है तो कुछ कीमत तो चुकानी होगी ना। अंततः महिला न पुरुष बनी ना महिला रही। दरकते घर, टूटते परिवार! कार्यक्षेत्र में संकट! बेटी को परिवार संभालना मां सिखा ही नहीं रही, बस उसे पुरुष बनना है। अदालतों में तलाक के मुकदमों के अंबार, बेटे जेलों में, पंचायतों में या अदालत में! पुरुष दवाब में महिला बदहवास! ये है महिला को पुरुष बनाने की कीमत! बेटी बचाओ बेटी - पढ़ाओ ठीक है, पर बेटा पढ़ाओ - बेटी सिखाओ भी चलना चाहिए। पुरुष खतरे में है तो पुरुष दिवस भी ठीक ही है। शेष महिला दिवस पर।

सादर!

राकेश चौहान 

#

RSC 

Tuesday, 18 November 2025

तोर दुपट्टा से पोंछबो कट्टा

'तोर दुपट्टा से पोंछबो कट्टा।

जहिया अई तो RJD के सत्ता!!'

और

भैया के आवे दे सत्ता।

कट्टा सटाए के उठाय लेबो घरा से।।


कह रहे हैं कि इन गानों ने बिहार में जंगल राज की याद ताजा कर दी और आरजेडी का सफाया हो गया।


परसों एक मित्र ने फोन करके खिन्नता से कहा कि मुख्यमंत्री ने च्यवन ऋषि मेडिकल कॉलेज का नाम बदल कर राव तुलाराम के नाम पर रखने की, आज की रैली में, घोषणा कर दी है। मेरे मुंह से निकला 'नायबड़ो करगो के खेल!' वह बोला 'क्या?' मैंने कहा कि हरियाणा में जाट धरती में बिठा दिए, उत्तर प्रदेश और बिहार में अहीर टिका दिए और आज बीजेपी ने दक्षिणी हरियाणा में अहीर केंद्रित राजनीति को ठिकाने लगाने लगा दिया। खैर 'कुत्ता कान ले गया' की आवाज़ सुन कर, कुत्ते के पीछे ना भाग कर, मैं अपने कान पर हाथ लगा कर देखने वालों में से हूं, अतः मैने भाषण सुनने के लिए यू ट्यूब का रुख किया।


हफ़्ते भर पहले राष्ट्रवादी यू ट्यूबर बाबा रामदास (बाबा की खरी खोटी चैनल वाले) का सानिध्य प्राप्त हुआ। उन्होंने मुझसे पूछा कि हरियाणा के अहीरों और यूपी बिहार के अहीरों में क्या फर्क है। मैंने कहा कि हरियाणा का अहीर यदमुल्ला नहीं है!  हरियाणा के किसी अहीर को ये कहते नहीं सुना कि वो हिन्दू नहीं अहीर है जबकि लोकसभा चुनाव के मौसम में बहुत सारे जाट और ठाकर भी गाते फिर रहे थे कि वो हिन्दू नहीं बल्कि जाट/राजपूत हैं, जैसे वो आसमान से टपके हों। और यूपी बिहार के अहीरों की तो बात ही छोड़ दीजिए। अहीर आज के दिन दक्षिणी हरियाणा में सब से अधिक प्रगतिशील जाति है, जिस का एक मात्र लक्ष्य तरक्की है और इसकी गूंज हर क्षेत्र में दिखती है। इलाके के सभी बड़े स्कूलों के संचालक अहीर हैं। हर व्यवसाय में, हर नौकरी में अहीरों का बोलबाला है। IAS, IPS, सेना में अधिकारी, आई आई टी, MBBS, हर क्षेत्र में अहीर! दक्षिणी हरियाणा का अहीर दुपट्टे से कट्टा पोंछने वाला भी नहीं है। बल्कि इलाका  आमतौर पर अपराध मुक्त है तो इसका कारण निःसंदेह अहीरों का अपराध में न के बराबर शामिल होना है। जो नए नए कुकुरमुत्ता गैंग उग रहे है वे भी गैर अहीर ही हैं। यदि कहा जाए कि अहीर इस क्षेत्र का ग्रोथ इंजन है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 


भाजपा की हिन्दू राजनीति से मुस्लिम तुष्टिकरण का किला ढहने के समानांतर जिस परिवर्तन पर लोगों का अधिक ध्यान नहीं वो ये है कि कहीं ओबीसी, कहीं सामंतवाद, कहीं ब्राह्मणवाद, कहीं किसान-कमेरे जैसे नारे लगाकर, 18-20% की आबादी के दम पर 30- 40 साल से राजनीति के पटल पर छाई विशेष जाति की राजनीति को हर जगह बाकी समाज ने झटक दिया। इस झटके की सबसे पहली शिकार 24 के लोकसभा चुनाव में भाजपा बनी। किंतु भाजपा की सब से बड़ी खूबी है कि ये पार्टी सीखती बहुत जल्दी है। इसने सीखा और जाट केंद्रित राजनीति को धता बता कर हरियाणा विधानसभा में ही बाजी पलट दी। दक्षिणी हरियाणा में राव इंद्रजीत की पुत्री के हारने से बाल - बाल बचने के बाद क्षेत्र की अहीर आधारित राजनीति के अंत की दस्तक तो सुनाई दी थी किन्तु इसकी पटकथा कोरियावास मेडिकल कॉलेज के नाम पर विवाद उठा कर कुछ मूर्खों ने स्वयं ही लिख दी। हालांकि च्यवन ऋषि के सामने राव तुलाराम को खड़ा करना किसी के गले नहीं उतरा और शेष समाज की बात तो छोड़िए, अधिकांश अहीरों ने ही इस विवाद को गलत बताया। किंतु वोट बैंक तो वोट बैंक है, नहीं माना! इस पृष्ठभूमि में जब मुझे मुख्यमंत्री की घोषणा का पता चला तो मेरे मुंह से उपरोक्त 'खेल कर गया' शब्द ही निकले। हालांकि जब मुख्यमंत्री का भाषण सुना तो समझ आया कि च्यवन ऋषि मेडिकल कॉलेज परिसर में बनने वाले अस्पताल का नाम राव तुलाराम के नाम पर होगा। यानि चम्मच में च्यवनप्राश! चाटते रहो! फिर भी यह अच्छा फैसला है। च्यवन ऋषि और तुलाराम दोनों ही क्षेत्र के महापुरुष हैं और च्यवन ऋषि तो तुलाराम के लिए भी महापुरुष रहे होंगे। परलोक में उनकी आत्मा स्वयं को च्यवन ऋषि की गोद में पा कर हर्षित ही होगी। लेकिन दो सवालों का जवाब नहीं मिल रहा। पहला, जिस गांव की ज़मीन पर यह मेडिकल कॉलेज बन रहा है उसके आसपास के लोगों को नौकरी तथा कॉलेज की सीटों में आरक्षण देने की मांग, जो निःसंदेह जायज थी! उसका क्या हुआ! क्या वो तुलाराम के नाम के अस्पताल के नीचे दब गई? फिर महीनों चले धरने का क्या औचित्य हुआ? वहां के लोगों को मिला क्या? अस्पताल के नाम का झुनझुना! खैर दूसरा सवाल कि क्या शेष उत्तर भारत की तरह दक्षिणी हरियाणा में भी 'अधिसंख्य जाति' केंद्रित राजनीति के दिन लद गए? जो भी हो पर पहले हरियाणा और अब बिहार के नतीजों का सबक तो सबके लिए है कि कोई भी जाति समाज को लंबे समय तक बंधक नहीं बना सकती, जब वो ठाड़ पर उतर आती है तो समाज उसको उसकी जगह दिखा ही देता है। इसके प्रमाण आने वाले समय में देखने को मिलते रहेंगे। वैसे यू ट्यूब पर दुपट्टे से कट्टा पोंछने वाला गाना ज़रूर देखिएगा! 

सादर 

राकेश चौहान 

#RSC