परिवर्तन की चाह तुम्हें है, बलिदानों से डरते हो!
क्यूँ कहते हो जीना इस को जब पल पल तुम मरते हो!!
कब चमकी हैं उषा की किरणें बिना तिमिर का नाश किये!
दीपक जलता रात-रात भर स्वर्ण सुबह की आस लिए!
धरा नापना तुम चाहो पर चलने से डरते हो!
परिवर्तन की चाह तुम्हे है, बलिदानों से डरते हो!!
दी आहुति कितनों ने , परिवर्तन की राहों में!
निकले थे पाने विजयश्री, पर सोये मृत्यु की बाँहों में!
सूरज को तुम छूना चाहो, 'पर' जलने से डरते हो!
परिवर्तन की चाह तुम्हे है, बलिदानों से डरते हो!!
परिवर्तन सौगात किसी को उपहारों में नहीं मिली !
जिसने भी अपना हक मांगा पायी उसने ही सूली !
परिवर्तन के हवन कुण्ड में जब कर दोगे सब कुछ अर्पण !
तब आएगी नयी सुबह तब आएगा 'नवपरिवर्तन' !!
Nice poem Sir,
ReplyDeleteLets start from you
Make sure I ll share my hand with your view.....
From Your Jamura No. 1
Wonderful Rakesh!!
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